Ghar Hai Mera Tutne Wala Silan Hai Deewar Me by Chetna Balhara
ढूंढ रहे हो इश्क़ को, क्या इतनी खुमारी है…
सही है या ठीक है, कैसी तबियत तुम्हारी है…
नाम बनेगा तो तुम भी, सुकून के पीछे भागोगे,
सुना है बड़े लोगो को भी, नींद की बीमारी है…
एक बात मेरे जहन से नहीं जाती है…
तुझे मेरी याद क्यों नहीं आती है…
हारी इश्क़ में मैं वो बदनसीब हूँ,
वजह कुछ और नहीं, मेरी ही जाती है…
मजबूर था तू तूने झूठ बोला था ना,
तेरी आंखे देख आज सच छुपाती है…
बेसहारा लड़की कहाँ भटकेगी,
सुनसान सड़क और रात डराती है…
मिन्नतें की मैंने और तू चला गया,
खैर शर्म तुझे कहाँ आती है…
बुरी रात है दिन सुहाना होगा,
मेरे हाथों की लकीरें यही बताती है…
कलम मेरी थक गयी और मुझसे कहने लगी,
कहानी है ये चेतना, तू इतनी क्यों जज्बाती है…
नशीली सी इन नजरों ने जैसे कहर ढाया हो…
मानो जैसे ईद का चाँद निकलकर आया हो…
खूबसूरती की तुम्हारी अब हम क्या ही बात करे,
चमचमाती मुस्कराहट, राम की जैसे माया हो…
बिक रही सरेआम मेहनत इन बड़े बाजार में…
भूख नहीं मिटेगी साहब, कंजूसी के व्यापार में…
बच्चे मेरे छोटे है अब, मैं भी अब लाचार हूँ,
घर है मेरा टूटने वाला, सीलन है दीवार में…
तहज़ीब वाले लोगों को शान बदलते देखा है…
बड़े बड़े लोगो को मैंने पहचान बदलते देखा है…
ये कुछ झूठे लोग है, यकीन नहीं इन सबपे क्योंकि,
मन्नत टूट जाने पर इनको, भगवान बदलते देखा है…
थोड़ा सा तुम थोड़ा सम्भलो, वो मेरा पिया चुरा लेगा…
जलाया है जो प्यार से अब मेरा दिया चुरा लेगा…
लिखना होगा ठीक से, चुपके से अब बोलेंगे,
थोड़ा सा धीरे बोलो, वो काफिया चुरा लेगा…
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