Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 3 by Shekhar Deep

Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 3 by Shekhar Deep


Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 3 by Shekhar Deep

 

मेरे दिए गए जवाबों के जख्मों में मौत के बाद भी दर्द होता है…

क्योंकि बेटा, किस्से और कहानी में फ़र्क़ होता है…

मुझे रावण की चिता बारिश ने बुझा दी…

मैं उठा और मेरी इतिहास--हार दफना दी…

अब खुद के लिखे इतिहास पे घमंड रखता हूँ…

मैं रावण हूँ खुद को सर्वप्रथम रखता हूँ…

वेदों को घोट के पीने वाला मैं रावण हूँ…

मैं महाकाल का भगत तुम सबसे पावन हूँ

और मैं सीधा अंत करता हूँ कभी करता पहल नहीं….

खुद को साफ़ समझने वालो, तुम मुझे रावण के हाथ का मैल नहीं…

अब इतना ज्ञानी हूँ तो अभिमान करना तो बनता है…

ये गुरूर और घमंड मुझ रावण पर जमता है…

और जब भोलेनाथ के लिए मैंने शिव तांडव गाया था…

तब महाकाल ने खुद मेरे हाथ में अपना चन्द्रहास ठहराया था…

और तीनो लोक में सिर्फ रावण नाम से डरते है…

क्योंकि बजाए खून के मेरी रगों में महाकाल खुद चलते है…

और खुद को तूफ़ान बताने वाली हवाओ सुन लो, मैंने बड़े बड़े सैलाब संभाले हुए है…

बस गलती ये रही कि मुझ रावण ने आस्तीन में सांप पाले हुए है…

अगर जो राज़--हार विभीषण को ना बताया होता…

तो क्या राम ने मुझे हराया होता…

फिर चाहे कर्म काले थे मेरे, पर मुझे महापंडित और कालविजयी माना जाता है…

आज भी महाकाल का सबसे बड़ा भगत रावण को माना जाता है…

जब राम ने मुझे हारने के लिए शिव यज्ञ रचाया था…

उस यज्ञ को साकार करने खुद रावण आया था…

और रावण पूरी धरती है, कोई मामूली वजन या बोझ नहीं है…

मुझ रावण को मौत का भी खौफ नहीं है…

और शूरवीर होने का प्रमाण मैंने अपने कर्मों से दिया है…

फिर चाहे भगवन से ही लड़ना पड़ा, जो मुझे मेरे खुद के लिए ठीक लगा, मैंने किया है…

और खुसनसीब हूँ, कि तुम सबको दी गयी एक बहुत बड़ी सीख हूँ…

फिर कहता हूँ कि तुम सब राम बन जाओ, मैं रावण ही ठीक हूँ…

 

कभी बैठ के प्यार से समझाया था, अभी तो रौद्र रूप मैंने निकाला भी नहीं है…

अरे तू क्या ही बराबरी करेगा मेरी, तू नाश्ता तो छोड़ मेरा निवाला भी नहीं है…

और ये मेरे ही खेल के दांव मुझे सीखा रहे है…

अरे कल के बच्चे खुद को रावण बता रहे है…

मेरा उठाया हर कदम अलग होता है…

कुत्तो के भोंकने में और शेर के दहाड़ने में फ़र्क़ होता है…




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