Main Pandit Ji Ka Beta Tha Wo Kazi Sahab Ki Beti Thi by Amritesh Jha – Part 2

Main Pandit Ji Ka Beta Tha Wo Kazi Sahab Ki Beti Thi by Amritesh Jha – Part 2

Main Pandit Ji Ka Beta Tha Wo Kazi Sahab Ki Beti Thi by Amritesh Jha – Part 2

 

जो गूँज रही थी मेरे कानो में वो उसकी शादी की सहनाई थी…

मैं कालिया बिछा रहा था राहों में आज मेरी जान की विदाई थी…

मैं वही मंदिर में बैठा था पर आज वो डोली में बैठी थी…

मैं पंडित जी का बेटा था वो काज़ी साहब की बेटी थी…

 

हर दरगाह में धागा बंधा मैंने हर मंदिर में माथा टेका था…

मैं ईश्वर अल्लाह सब भूल गया जब उसको जाते देखा था…

कि सुख चुकी थी सब कलिया हर गली सुनसान थी…

कल तक थी जो मोहब्बत मेरी आज किसी की बेगम जान थी…

इश्क़ से वाक़िफ़ थी वो लेकिन मजहब से अनजान थी…

बस गलती इतनी सी थी हमारी कि मैं हिन्दू वो मुसलमान थी….

बिलखता रहा में रात भर जब सारा ज़माना सोया था…

अकेले अश्क़ नहीं थे मेरी आँखों में वो क़ाज़ी भी उतना ही रोया था…

हर दर्द संभाल कर रखा मैंने क्या बिगाड़ा था ज़माने का…

किसी ने गम मनाया जुदाई का तो किसी ने जश्न मनाया उसके आने का…

मैं उससे मोहब्बत करता था वो मुझसे मोहब्बत करती थी…

मैं पंडित जी का बेटा था वो काज़ी साहब की बेटी थी…

 

रूह पड़ी थी पास में मेरे और जिस्म उसके पास मिली….

इश्क़ मुकम्मल हो गया उसका जब अगली सुबह उसके घर में ही उसकी लाश मिली…

सुबह एक ज़ख़्म और मिला रात का ज़ख़्म अभी भी ताज़ा था…

रात में डोली उठी थी जिसकी सुबह में उसका ज़नाज़ा था…

सब मज़हबी कीड़े आये वहा पर अपने-अपने मज़हब की बोली लेकर…

मैं भी गया जनाज़े में उसकेउसके नाम की डोली लेकर…

तिनका-तिनका बिखरा था में मेरी आँखों के आगे पूरी दास्तान थी…

जिस्म ठंडा पड़ा था उसका लेकिन चेहरे पे मुस्कान थी

इश्क़ से वाक़िफ़ थी वो लेकिन मजहब से अनजान थी

बस गलती इतनी सी थी हमारी की मैं हिन्दू वो मुसलमान थी…

कभी मैं उसमे साँसे लेता था कभी वो मुझमे साँसे लेती थी….

मैं पंडित जी का बेटा था वो काज़ी साहब की बेटी थी…

 

मुझे उसके जाने का गम नहीं आखिर तक कौन साथ निभाता है

लेकिन मज़हब-मज़हब करने वालो मज़हब भी पहले प्यार सिखाता है

इश्क़ मुकम्मल हो जाये सबकी किसी में मज़हब का डर हो

बस ख्वाइश इतनी सी है मेरी फिर मेरी जगह कोई और हो

बस ख्वाइश इतनी सी है मेरी फिर मेरी जगह कोई और हो….

 



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