Halaat by Lovely Sharma
बदहवास मेरे हालात हो गए…
जिंदगी से हम निढाल हो गए…
थे नहीं हम ऐसे कभी,
जैसे उसके बाद हो गए…
सजा उसकी थी जो किया कभी ना,
किये सब बर्बाद हो गए…
लकीर थी फ़क़त दरमियाँ,
और अलग मुल्क़ के नाम हो गए…
कैसे पहुंचे उस तक,
मुहाल पड़े सवाल हो गए…
हुजरा उजड़ गया मेरा,
बस्ती शहर आबाद हो गए…
नामदात नहीं ज्यादा मगर,
औसाफ़ हैफ़ बेकार हो गए…
नज़म लिखने जो बैठे एक रात,
कई दिन बर्बाद हो गए…
सुकून की तलाश में,
बंद सब दरबार हो गए…
चाहा नहीं था कभी होना ऐसा,
ऐसे अपने आप हो गए…
दर बदर की चोट में,
बदहवास मेरे हालात हो गए…
कैसे पहुंचे उस तक,
मुहाल बड़े सवाल हो गए…
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