Randi by Anshuman Paliwal

Randi by Anshuman Paliwal


Randi by Anshuman Paliwal

 

उसने हाँ कर दिया तो बंदी हो गयी…

उसने ना कर दिया तो रंडी हो गयी…

उसने चार लोगो से बात नहीं की तो घमंडी हो गयी…

उसने चार लोगो से हंस के बात की तो रंडी हो गयी…

थे नुक्कड़ पे चार लोग, हाथो में सुट्टा, जुबां पे गाली…

पिक्चर किया ज़ूम, भाई ये देख रंडी है साली…

वो मुझसे आगे है, मेरा ईगो हर्ट हुआ…

कैसे सकती है मुझसे जीत, देख अभी रंडी बोलूंगा…

उछाल दूंगा साली का चरित्र…

हे लड़कियों करैक्टर का सर्टिफिकेट बनाओ…

और जब कोई रंडी बोले तो उसे वो करैक्टर वाला सर्टिफिकेट दिखाओ…

हाँ सुनने में अजीब है, लेकिन कोई रास्ता नहीं बचा…

नहीं तो फिर से किसी की क्रूर जुबान पे रंडी बनोगी बेवजह…

कुछ लोग हर वक़्त तुम्हे नोंचने के लिए तैयार है….

और जब तुम इनके हाथ नहीं आओगी,

तब यही लोग रंडी शब्द को बनाकर बैठे अपना हथियार है….

एक वैश्या ने मुझसे बोला कि रंडी बोलकर हंसना,

और उसके पीछे की कहानी को समझना, दोनों में बहुत फ़र्क़ है….

रंडी सुनना और बर्दाश्त करना, एक बहुत बड़ा दर्द है…

और रंडी बोलके अपना ईगो सैटिस्फाई कराने वाला इंसान सबसे बड़ा नामर्द है…

तुझे लगा तू रंडी बोलके बहुत बड़ा काबिल हो गया…

लेकिन असल में तू एक नपुंसक साबित हो गया…

रंडी वो नहीं रंडी तेरी सोच है…

तू गन्दी सोच वाला इस दुनिया पे बोझ है…

अगर ये सुनके भी तू ना जागे….

तो चल बोलके दिखा किसी लड़की को रंडी अपनी माँ के आगे…

तेरी माँ भी बोलेगी, मेरी परवरिश का दोष होगा…

तेरी माँ को तुझपे बहुत अफ़सोस होगा…

तू घमंडी है तभी तेरी जुबान पे रंडी है…

तेरी नीयत खोटी है, तेरी सोच बहुत छोटी है…

तेरे बेवजह रंडी बोलने से कोई लड़की चरित्रहीन नहीं होती है…




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