Aakhiri Kavita The Last Poem by Jai Ojha
मोहब्बत में भले कितनी ही नाराजगियाँ हो, गलतफहमियां हो, शिकायतें हो, इल्जिमात हो, रुसवाईयाँ हो, बेरुखियाँ हो, फासले हो, तोहमतें हो या रंजिशे हो या अदावतें ही रही हो, लेकिन आखिरी कविता हमेशा सच्चाई बयां करेगी और इस दुनिया की आखिरी कविता जब भी लिखी जाएगी तो वो एक प्रेम कविता होगी…
ये आखिरी कविता है, आखिरी मतलब आखिरी…
आखिरी मतलब, मैं सच बोलूंगा…
आखिरी मतलब, मैं नहीं दूंगा कोई झूठी तसल्ली, कोई झूठा दिलासा…
कोई झूठी कसम या कोई झूठा भरोसा…
आखिरी मतलब, मैं नहीं करूँगा नफ़रतें…
नहीं भेजूंगा लानतें, नहीं करूँगा शिकायतें…
आखिरी मतलब, मैं हिम्मत जुटाकर सच लिखूंगा…
कम अल्फ़ाज़ों में बेहद लिखूंगा…
आखिरी मतलब, मैं बता दूंगा कि मैंने इंतज़ार में तुम्हें लिखा,
मेरी तलाश में तुम थी…
मैंने बैकस्पेस में तुम्हें छुपाया,
मेरे हर अलफ़ाज़ में तुम थी…
आखिरी मतलब, मैं बता दूंगा कि हर रोज़ सुबह,
तुम्हारे मैसेज के उम्मीद में अपना फ़ोन टटोला मैंने…
हर शब उन कंवर्सशन्स को खोला बंद किया फिर खोला मैंने…
हर रोज़ हर बार फिर उसी गली से गुजरा मैं…
ये जानते हुए कि तुम नहीं हो वहां,
फिर भी बस वही जा ठहरा मैं…
आखिरी मतलब, मैं बता दूंगा कि तुम्हारे दिए हुए किसी तोहफें को कभी फेंका नहीं मैंने…
और बिना तुम्हारे कोई हसीन ख्वाब कभी, देखा नहीं मैंने…
तुम्हारा दिया हर फूल हर बिखरी पत्ती के साथ सहेजा मैंने…
तुम्हारे खतों को फाड़ दिया गया, लेकिन उन कागज के आखिरी टुकड़ों को फिर समेटा मैंने…
आखिरी मतलब, मैं ये भी बता दूंगा कि तुम्हारे जाने के बाद भी,
अपनी बाइक का शीशा ठीक वही रखा, जहाँ से तुम नजर आती थी…
हमारे वस्ल के बाद अपनी उस कमीज को कभी नहीं धोया,
जिससे तुम्हारी महक आती थी…
अपने बालो को बिलकुल उतना ही बिगाड़कर रखा,
जितना तुम्हें रखना होता था…
अपनी शर्ट के स्लीव्स को बिलकुल वही तक लपेटा,
जहाँ तक तुम्हें ढकना होता था…
आखिरी मतलब, मैं बता दूंगा कि मैं आज भी हर शाम वही मिलता हूँ,
जहाँ हम मिला करते थे…
मैं आज भी उसी मोड़ पर रुका रहता हूँ,
जहाँ हम चला करते थे…
मेरे हर अफ़साने में आज भी नाम तुम्हारा ही रहता है…
मेरा किस्सा गोयका हर लफ्ज़ आज भी कहानी तुम्हारी कहता है…
आखिरी मतलब, ये भी है कि मैं आज तुमसे कुछ सवालात करूँगा…
तुम्हारे पुराने अक्श से फिर मुलाक़ात करूँगा…
अच्छा बताओ ना, बताओ ना क्या तुम अब भी वही घडी पहनती हो….
गुस्सा आने पर अपने हाथो को अब किसके सीने पर पटकती हो…
अच्छा बताओ ना, तुम्हारी कलाई में क्या अब भी उस कंगन का निशान बनता है…
क्या तुम्हारा वो किचन आज भी हमारी कहानी कहता है…
अच्छा क्या कोई है, जो अपनी कहानी में तुम्हें बतौर हीर पेश करता है…
क्या खुद राँझा बन कोई ज़माने से बैर करता है…
क्या कोई है जो तुम्हारी ज़ुल्फ़ को कान के पीछे सरकाता है…
या वो जो मोहब्बत के रूहानी किस्से तुम्हें सुनाता है…
क्या कोई है जो तुम्हारे ज़ोर से हंसने पर तुम्हारा गम पहचान लेता है…
या वो जो तुम्हारे सहम जाने पर तुम्हारा हाथ थाम लेता है…
अच्छा क्या कोई है जो तुम्हें अपनी कॉपी के आखिरी पन्ने पे लिखता है…
क्या किसी को तुम्हारी आँखों में अपना रहबर दीखता है…
क्या कोई है जिसने तुम्हारे अंदर छुपी मासूमियत को पहचाना है…
तुम्हारे यौवन से कई गुना ज्यादा तुम्हारे बचपन को जाना है…
क्या कोई है, कोई है जिसने तुम्हारे आंसुओ को पिया है…
जिसने अपने सपनो से ज्यादा तुम्हारे सपनो को जिया है…
क्या कोई है जिससे इश्क़ पर तुमको ज्यादा यकीन हुआ है…
जिसने हर दफा तुम्हें नहीं, तुम्हारी रूह को छुआ है…
अच्छा बताओ ना, बताओ ना क्या तुम अब भी एक दम से दूर चली जाती हो…
क्या तुम अब भी सबकुछ बड़ी जल्दी भूल जाती हो…
क्या अब भी तुम्हारे पास रुकने की कोई वजह नहीं होती…
क्या अब भी तुम्हारे दिल में यादों की कोई जगह नहीं होती…
क्या अब भी तुममे और मुझमे उतना ही फ़र्क़ है…
क्या हमारी जुदाई का सिर्फ एक ही सीने में दर्द है…
आखिरी मतलब, ये भी है कि हां मैंने नफरतों में लिखा है तुम्हें…
पर इश्क़ तुमसे हमेशा रहा…
हर रोज़ ताल्लुक तोडा है तुमसे और कुछ यूँ ताल्लुक तुमसे हमेशा रहा…
आखिरी मतलब ये भी है कि आज मैं तुम्हारे लिए दुआ करूँगा…
कुछ इस तरह से तुम्हें मुझसे, हमेशा के लिए जुड़ा करूँगा…
चलो तुम्हारी ज़िन्दगी में बहार आये, तुम्हारी जिंदगी गुलिस्ता हो…
मेरे पास भी मैं रहूं और मेरी आखिरी कविता हो…
बरसो बाद भी जख्मों को भरा करेगी मेरी कविताये…
मैं रहूं या ना रहूं, सदा रहेगी मेरी कविताये…
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