Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 4 by Shekhar Deep

Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 4 by Shekhar Deep


Mai Ravan Hi Thik Hun Ravan Vani Part 4 by Shekhar Deep

 

गिरी हुई दीवारें मैं फिर बना दूंगा…

मेरे लंका मैं फिर सजा दूंगा…

मैं घायल शेर सा खतरनाक हूँ,

मेरी जान, दहाडुंगा तो सारा शहर हिला दूंगा…

सर जो कटा एक तो फिर जायेगा…

अब अगर ये रावण बुरा है ना तो अन्धकार की तरह छा जायेगा…

और ढोल नगाड़े शोर शराबा कुछ वानर भी साथ लाया है…

मुझे मिटाने बन के राम, दुशाशन सामने आया है…

दुनिया को अच्छे का पाठ पढ़ाने आया है…

तू खुद क्या है झाँक अपने अंदर जो मुझे जलाने आया है…

भूल गया कि कैसे द्रोपदी को भरी सभा में तुमने घसीटा था…

एक राजा ने एक राजा से उसकी औरत को जीता था…

हाँ गलत किया मैंने जो माता सीता को उठा के लाया था…

तो क्या हुआ उन सीताओं का जिन्हे तुमने नोंचकर खाया था…

ना तू श्रीराम सा न्यायधीश, ना तू श्रीराम सा भाई है…

तो फिर क्यों मुझे राक्षस राजा तक आने की हिम्मत तूने दिखाई है…

ना श्रीराम सा दयावान तू, ना श्रीराम सा तेज है तुझमे…

अरे ना जाने तुझ जैसे कितने दुशासन, सदियों से कैद है मुझमे…

खेल के जुआ दांव पर जो अपनी औरत को जलाता है…

वो युधिष्ठिर इस दुनिया में धर्मराज कहलाता है…

और ये नीच समाज मुझ रावण के पुतले जलाता है…

हां बता दूँ, कि ना मैं नर हूँ ना नारायण हूँ, मैं दस सिर वाला दानव हूँ…

अरे मैं परम पूजनीय पंडित हूँ, मैं महाकाल का तांडव हूँ…

तू नजरे उठा और आगे बढ़, आकर मुझपर वार कर…

दिखादे सारी दुनिया को कि कैसे श्रीराम बनेगा दुशासन मुझ लंकापति को मारकर…

ये ग्रह नक्षत्र राहू केतु मैं अपनी उँगलियों पर गिनता हूँ…

अरे मुझे जलाने का हक़ मैं तुझ दुशासन से छीनता हूँ…

मैं राक्षस राज रावण हूँ, मैं महाकाल पर जीता हूँ…

ये मौत मृत्यु, जीवन असत्य, ये चिलम फूंककर पीता हूँ…

ना कोई काण्ड हूँ, ना कोई कर्म हूँ, मैं सदियों से चली रही रीत हूँ…

फिर कहता हूँ कि तुम सब राम बन जाओ, मैं रावण ही ठीक हूँ…

 



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