Main Tumhe Phir Miloongi by Priya Malik
मै तुम्हे फिर मिलूंगी…
कहा? कैसे? किस तरह?
मुझे सब पता है,
जरूर तुम्हारी सुबह की पहली चाय में…
इलायची बनके महकूंगी…
या जैसे पत्ती चाय का रंग स्याह करती है…
मै अपने इश्क की इक चम्मच डुबोये…
गर्म चाय की प्याली बन…
तुम्हारी मखमली जुबान पर लगूंगी…
मुझे पता है ठीक कहाँ, कैसे, किस तरह,
मै तुम्हे फिर मिलुंगी…
या इक पैकेट मै बैठी मिलूंगी…
जिसे खोल तुम इक सिगरेट निकाल…
अपनी उंगलियो से तराशते हो…
मै उस धुंये का इक लंबा सा कश बनकर….
तुम्हारे ओठो से मिलूंगी…
तुम्हारी साँसो से कुछ देर बात कर…
सुकून की एक गहरी आह बनके…
तुम्हारी छाती में रहुंगी…
मुझे पता है ठीक कहाँ, कैसे, किस तरह…
मै तुम्हे फिर मिलुंगी…
मै और कुछ नही जानती…
बस इतना जानती हुँ…
के वक्त से जूझ कर…
नसीब को चीर कर…
रेखाओ को तोड़ कर तुम्हे आना पड़ेगा…
और अगले हर जन्म मे मेरा साथ निभाना पड़ेगा…
मै भी जुझूगी, चीरूगी, तोड़ुगी…
वक्त, नसीब, रेखायें…
और तुम्हे फिर मिलुंगी…
मै तुम्हे फिर मिलुंगी…
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