Kabhi Aaoge by Lovely Sharma

Kabhi Aaoge by Lovely Sharma


Kabhi Aaoge by Lovely Sharma

 

कभी आओगे तो बताएँगे,

कि तेरे जाने के बाद कैसे बिखरे थे….

ये आंसू, ये खवाब और सारे वादे जमीन पर पड़े थे…

तड़पती हुई यादें, तेरा नाम लेकर, तेरे जाने की वजह मुझसे पूछ रही थी…

और कमरें की सारी दीवारें, चीख चीखकर मुझे ये समझा रही थी…

कि तुम चले गए…

मैं बिलखती हुई खुद में सिमट जाती,

और सिसकियों के साथ तेरे जाते हुए क़दमों की आवाज सुनती…

उस वक़्त मालूम था कि तुम जा रहे हो…

पर यकीं नहीं कर पा रही थी इस सच पर कि तुम कभी नहीं आओगे…

आँखों के सामने तेरी तस्वीर को निहारते हुए खुद को बहुत समझाया,

क़ि दो पल का गुस्सा है, कुछ लम्हों में शांत होकर तुम दौड़े दौड़े वापस चले आओगे,

और मुझे अपने गले से लगाओगे…

पर, पर, पर, बिछड़ते वक़्त तेरी बोली हुई सारी कड़वी बाते,

रह रहकर मेरे कानो में गूंज रही थी…

और मेरे अंदर मेरी रूह को झंझोड़ते हुए ये कह रही थी…

क़ि गलती चाहे किसी की भी हो,

अब तुम्हारे लौटने की सभी गुंजाईश ख़त्म हो चुकी है…

मैं, मैं चाहते हुए भी तुम्हे रोक नहीं पायी…

और तुम ना चाहते हुए भी मुझसे मुँह मोड़ कर चले गए…

खुले हुए दरवाजे को देखकर मन में बहुत बार ये ख्याल आया,

कि शायद तुम अपनी भूली हुई किसी चीज को,

वापस लेने के बहाने से ही सही वापिस आओगे

और मैं तुम्हे कैसे ना कैसे करके रोक लुंगी…

लेकिन घंटो ताक में बैठे हुए भी, जब तुम नहीं आये…

तो दिल में ये बात तड़पाने लगी कि अब तुम कभी नहीं आओगे…

कई दिनों तक मैंने खुद से मिलना भी बंद कर दिया…

मेरा हाल क्या था ये तो कोई नहीं बता सकता,

पर मैं, मैं नहीं रही…

बहुत सारे मौके ऐसे होते थे जहाँ खुशियां तो होती थी,

पर मैं खुश नहीं थी…

मानो कोई जिन्दा जिस्म हो जिसकी रूह मर चुकी हो…

मैं हर जगह तेरी मौजूदगी को ढूंढ़ते हुए बैठ जाती,

पर सिवाए खालीपन के कुछ हाथ ना लगता…

आज भी ये खत सिर्फ इसलिए लिख रही हूँ,

क्योंकि चाहती हूँ कि कभी तुम आओगे तो बताएँगे…

कि तेरे जाने के बाद कैसे बिखरे थे….

लेकिन फिर ये बात खुद को समझाती हूँ…

कि अगर मेरे हाल की तुम्हे इतनी परवाह होती,

तो मुझे ये खत लिखने की कभी जरूरत ही नहीं पड़ती…

लेकिन फिर भी, कभी आओगे तो बताएँगे जरूर,

कि तेरे जाने के बाद कैसे बिखरे थे….




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