Kaash by Lovely Sharma
काश आसुओं का भी रंग होता…
हसने का सलीका और रोने का ढंग होता…
सुबह मिलते जो रंगीन तकिये,
ग़मगीन रातों से अयादत होता…
झूठे है कितने रंग इस बेदर्द ज़माने के,
बेरंग जिंदगी से हिसाब होता…
जंग होती जो जज्बातों की,
आखिर तक वो संग होता…
जले है कितने सपने इन आँखों में,
बेपर्दा राख का मंजर होता…
कितना आसां हो जाता ना हाल बयां कर जाना,
जो आंसुओ का भी रंग होता…
अदालत में जिंदगी की,
तन्हाई का गवाह होता…
ऊँची है कितनी लहरें इस दिल के समंदर की,
हर ढंग में वो संग होता…
आँखों के किनारे रंगो से सजती…
दिल की जुबां भी हलकी सी लगती…
दिए की लौ जो बुझती सांसो की,
रंगीन होकर बयां वो करती…
सच झूठ सब खुद ही दिखता…
अगर एक रंग ख़ुशी का और एक रंग गम का होता…
हसने का सलीका और रोने का ढंग होता…
काश, काश आसुओं का भी रंग होता…
जले है कितने सपने इन आँखों में,
बेपर्दा राख का मंजर होता…
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