Mard Wo Bane Vaishya To Main Gigolo Banta Hun by Lovely Sharma
अग्नि की ताप से, रात के विश्राम से,
समय के ठहराव से, मेहनत के अंजाम से,
मैं मर्द बनता हूँ…
एक सीख ज्ञान की मैं खो नहीं सकता…
आँसू बहाकर मैं रो नहीं सकता…
और अगर ऐसा किया तो मैं मर्द नहीं बन सकता…
उम्र से पहले उम्र वाला बनता हूँ….
ज़िम्मेदारियों का ठीकरा साथ लेकर चलता हूँ…
चुप्पी को अपनाकर मैं मर्द बनता हूँ…
खवाबों का दफनाकर मैं मर्द बनता हूँ…
दिया देकर अपनी मैं दूसरे के घर में रौशनी करता हूँ…
बेटी देकर मैं अपनी कन्यादान करता हूँ…
बाप, भाई, बेटा, यार, मैं लाखों किरदार बनता हूँ…
मैं ऐसे ही तो मर्द बनता हूँ…
और मजबूरी में वो बने वैश्या तो मैं जिगोलो बनता हूँ…
मोमबत्ती जलाकर भी मैं निर्भया का दोषी बनता हूँ…
झूठे फसादों में मैं बेबुनियाद इलज़ाम बनता हूँ…
नुमाइश का खिलौना तो कभी बदजात बनता हूँ…
मैं ऐसे ही तो मर्द बनता हूँ…
मैं शिव बना, मैं शयाम बना, मैं तांडव नाच भी बनता हूँ…
मैं ऐसे ही तो मर्द बनता हूँ…
बाप का सहारा, मैं माँ की आँखों का तारा भी बनता हूँ…
बहन का रखवाला मैं भाई का यार भी बनता हूँ…
यारों की यारी की महफ़िल में, मैं उस महफ़िल की जान भी बनता हूँ…
मैं ऐसे ही तो मर्द बनता हूँ…
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