Mai Hu duryodhan by Dhiraj Singh Tahammul
सुनते है तुम चल पड़े अच्छी डगर पे हो…
चेहरा कोई ओढ लो,सबकी नजर में हो…
बेहुदगी,आवारगी,लहजा बुरा,बातें खराब,
तुम तो हर एक चाल से शहरी बहर मे हो…
चाँद साहिर सा दिखे है आसमां मे उस पहर,
जब वो आये सामने ओढनी भी सर पे हो…
हुआ पराजित कुरुक्षेत्र में…
हुआ पराजित कुरुक्षेत्र में…
तभी प्राप्त सम्मान नहीं…
हां हां मैं दुर्योधन हूं मुझे धर्म का ज्ञान नहीं…
धर्म पक्ष का नाम मिला पांडव को सुयश तमाम मिला…
कृपा कृष्ण की बनी रही सो मनचाहा परिणाम मिला…
कूटनीति ही युद्ध नीति है हर चरित्र में दाग मिला…
वे करते तो दैविक कारण मुझे दुष्ट का भाग मिला…
भरी सभा में जाति पूछ कर वीर कर्ण का मान लिया…
अर्जुन को श्रेष्ठ बनाने को छल से अंगूठा दान लिया…
दौड़ चले आए खेले को…
दौड़ चले आए खेले को…
और नहीं क्या कर्मकाज थे…
आमंत्रण मेरा था पर जुए के आदि धर्मराज थे….
हुई द्रौपदी शर्मसार वह चीरहरण था भूल बड़ी…
है मुझे ज्ञात था पाप मेरा मेरे मत पर थी धूल पड़ी…
पर जिसने दांव लगाया था…
पर जिसने दांव लगाया था…
क्या उन्हें नारी का मान नहीं…
हां हां मैं दुर्योधन हूं मुझे धर्म का ज्ञान नहीं…
मैं क्यों ना लेता राज पाठ…
मैं क्यों ना लेता राज पाठ…
पांडव थे उसको हार गए…
वह युद्ध नहीं था खेल मात्र पर हार गए तो हार गए…
मैं दान दक्षिणा में देता या रखता धरती तमाम…
अधिकार उन्हें क्या था जो आकर मांगे मुझसे पांच ग्राम…
स्वीकार मात्र ललकार किया मैंने तो ना चाहा था रण…
प्रतिशोध अग्नि मे ज्वलित कृष्ण ने ही ठाना था रण का प्रण…
पर पूर्ण रुप से उद्यत रण को क्षत्रिय धर्म निभाने को…
मैंने ही अवसर दान किया पांडव को नाम कमाने को…
यदि नहीं युद्ध में विजयी होते पाते वे गुणगान नहीं…
हां हां मैं दुर्योधन हूं मुझे धर्म का ज्ञान नहीं…
धर्म-अधर्म पराजय-जय…
धर्म-अधर्म पराजय-जय…
यह पाठ पुनः दोहराया जाता…
अभी दुराचारी कहते हैं विजयी होता धर्म कहाता…
क्यों कर विजयी होता पर मेरे ही मेरे साथ न थे…
व्यथित सभी ने किया आत्मबल पांडव मात्र आघात न थे…
नहीं आक्रमण किया शिखंडी पर प्रण से थे लस्त पितामाह…
वार शिखंडी के आश्रय पर हुए युद्ध मे पस्त पितामाह…
पुत्र मृत्यु संदेश प्राप्त कर शस्त्र त्याग कर शोक ग्रस्त थे…
युद्ध धर्म से भ्रमित पूर्णत: गुरु द्रोण बस मोह शक्त थे…
सबसे प्रियतम सखा कर्ण पर उसने भी ना साथ दिया…
पार्थ मात्र के वध के प्रण से मुझ पर गहरा घात दिया…
मुझे छोड़ मेरी सेना लक्ष्य किसी को ध्यान नहीं…
हां हां मैं दुर्योधन हूं मुझे धर्म का ज्ञान नहीं…
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