Khayal Ko Haqiqat Se Baandhi Rakhti Hai by Muskan Saxena
इश्क़ किया था हमने भी, हम भी रातों को जागे थे…
था कोई, जिसके पीछे हम नंगे पाँव भागे थे…
इश्क़ एक ही जात में हो जरुरी है क्या…
वो राज़ी हर एक बात में हो जरुरी है क्या…
और हम दिल दे बैठे जिस मौसम में वो मौसम पतझड़ का था,
अरे मोहब्बत बस बरसात में हो जरुरी है क्या…
कभी कुछ बाज़ी हारकर भी देख लेने दो हमे,
जीत ही अच्छी हर बिसात में हो जरुरी है क्या…
और बड़ी आसानी से ये मान लिया तुमने वो बेवफा है,
मिलावट उसके भी जज्बात में हो जरुरी है क्या…
और अब वो दोनों रिश्ता तोड़ने की बात करते है,
मगर दोनों एक ही हालात में हो जरुरी है क्या…
अब लौट आओ वक़्त सिमटता जा रहा है…
मेरा दिल अपनी जगह से जरा हटता जा रहा है…
और तुम्हारे नूर की मुझमे कुछ कमी सी है शायद,
तभी लोग कहते है मेरा नूर घटता जा रहा है…
तेरे हर सवाल का जवाब लिखा है…
मैंने इश्क़ के फूलों में तुझे गुलाब लिखा है…
और तेरे उन्स के मिश्रे तो बेहद खूबसूरत है,
मेरे ही कांपते हाथो ने इन्हे ख़राब लिखा है…
और लोग कहते है मोहब्बत का नशा उतर जाता है वक़्त के साथ,
तेरा चढ़ता रहा तो तुझे शराब लिखा है…
और तेरी मौजूदगी ख़याल को हकीकत से बांधे रखती है,
तू दरमियाँ किसी खवाब सा तो तुझे खवाब लिखा है…
और मुकम्मल हर शेर कर दूँ, मैं किसी पन्ने पे लिखकर,
वो पन्ना इश्क़ का, तुझे इश्क़ की किताब लिखा है…
तेरे हर सवाल का जवाब लिखा है…
मैंने इश्क़ के फूलों में तुझे गुलाब लिखा है…
के तुम्हे पाना, खोना, फिर पाना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
तुम्हारा होकर, किसी और का हो जाना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
और बहाने बनाना बहुत खूब आते है तुम्हे, पता है मुझे,
पर ये बात तुम्हारी आँखों में देखके कह पाना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
और यूँ तो बस एक पल काफी है किसी को याद करने के लिए,
पर मेरा तुम्हे याद आना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
और हमारी मोहब्बत ऐसी है, तुम्हारे पीछे नंगे पाँव दौड़ जाए,
पर मेरे पाँव चल ना जाए कही, तुम्हे ये ख़याल आना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
और सुनो बहुत कह लिया तुम्हारे बारे में, बहुत कह लिए तुम्हारे किस्से,
किसी शायर की तरह अपने दर्द को लिखते जाना, मेरी इतनी औकात कहाँ…
सर्द सुबह में, ओस की बूंदो के बीच, तेरे हाथो की बनी एक चाय चाहिए…
और मुझे इश्क़ के गुनगुने मसलो के बीच, तेरी सोंधी से अदा चाहिए…
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