Meri Dua by Lovely Sharma

Meri Dua by Lovely Sharma


Meri Dua by Lovely Sharma

 

इंसान अपनी उम्मीदों के सहारे जीता है और उस उम्मीद को मुकम्मल करने के लिए, उस उम्मीद को कायम रखने के लिए हम दुआ करते है और मैं भी दुआ करती हूँ लेकिन हम सब अपनी चीजों को मुकम्मल करने के लिए दुआ करते है मैं अपनी जिंदगी में दो दुआ मांगती हूँ अब दो दुआ, समझ के चलिएगा…

 

मोहब्बत हर किसी को होती है और कुछ मोहब्बत के किस्से यूँ होते है कि वो जंग छेड़ देते है हक़ीक़त और खवाब के दरमियाँहक़ीक़त हमे पता है कि उसके साथ होना, उसके साथ रहना या उस मोहब्बत का मुकम्मल होना, हमारे लिए अच्छा नहीं होगा, वो हमे ही नुकसान देगा लेकिन हम फिर भी ख्वाब बुनते है, हम वो सपने देखते है जिन्हे देखने का हमे हक़ नहीं हैजिन्हे देखकर हमे ये पता है कि वो कभी पूरे नहीं होंगे…

 

मोहब्बत, मोहब्बत ने छेड़ी एक जंग दिल और दिमाग के बीच…

उस जंग में मैंने दो दुआ मांगीपहली दुआ ये जो प्यार में पड़ा हर शख्स अपने रब से मांगता है कि उसकी मोहब्बत मुकम्मल हो जाएउसकी कहानी कभी अधूरी ना रहे और मैंने भी वही दुआ मांगी कि मेरी अधूरी कहानी कभी अधूरी ना रहे

 

मुझे पता है, मैं अपने दिमाग को जानती हूँ, मैं हक़ीक़त को जानती हूँ…

और मैं वही तराज़ू लेके, तर्क वितर्क को देकर उन बातों को तोल रही हूँ, अपने ख़्वाबों को तोल रही हूँ…

मैं ज़िन्दगी से, उस ज़िन्दगी की किताब में जिसके कोरे पन्नो पर हमे लिखने की इज़ाज़त ही नहीं है…

मैं अपने रब से दुआ मांगके, स्याही की गुजारिश कर रही हूँ…

लेकिन, लेकिन, लेकिन…

मैं ये भूल जाती हूँ कि जिंदगी नाम की किताब में हमे लिखने की इज़ाज़त ही नहीं है हमे हक़ ही नहीं है…

और जज्बातों से बनी स्याही से फकत शायरी की इज़ाज़त दी है, जिंदगी नहीं बन सकती है…

तो ये जो दुआ है कि मेरी मोहब्बत मुकम्मल हो जाए और मेरी मोहब्बत कभी अधूरी ना रहे, ये मेरा दिल मांगता है…

लेकिन अपनी उन्ही ख्वाहिशो को मारकर, उन्ही जज्बातों को मारकर,

अपनी एकतरफा मोहब्बत को ज़िंदा रखने के लिए मैं दूसरी दुआ मांगती हूँ….

और दूसरी दुआ ये होती है कि मेरी पहली दुआ कभी कबूल ना हो….

क्योंकि मुझे पता है, कि अगर मेरी पहली दुआ कबूल हुई…

तो मेरा दिल मेरे दिमाग पे इतना हावी हो जायेगा…

कि मैं खुद को नहीं संभाल पाऊँगी…

खुद कि छेड़ी हुई इस जंग में,

ख्वाब और हक़ीक़त के दरमियाँ, जिसमे दिल एक तरफ चाहतें कर रहा है…

और दूसरी तरफ दिमाग तर्क वितर्क की बातों को तोल रहा है,

मैं खुद को हार जाउंगी…

इस जंग में मैं हक़ीक़त के सामने अपने ख्वाबों को मरता हुआ देखूंगी…

इस जिंदगी में मैं खुद को मरता हुआ देखूंगी…

मेरा प्यार कमजोर नहीं है, हाँ मानती हूँ प्यार अँधा होता है…

और इस प्यार में, इस मोहब्बत में इस इश्क़ में हमारी आँखों पर खुशियों वाले सपनो से लदी पट्टी हमारा दिल मानता है…

लेकिन अब आप ही बताओ कि मैं कैसे इस चीज को झुटला दूँ…

कि अगर मेरी दोनों में से कोई भी दुआ कबूल हुई, तो नुकसान मेरा होगा…

लेकिन मैं ये जानती हूँ कि मेरा दुआ माँगना जरुरी है…

और उसमे से कोई भी दुआ कबूल हो उसमे मर्जी खुदा की होगी…




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