Kahani Karn Ki by Abhi Munde

Kahani Karn Ki by Abhi Mudey


Kahani Karn Ki by Abhi Munde

 

पांडवो को तुम रखो, मै कौरवो की भीड से

तिलक शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं

सूरज का अंश हो के फिर भी हुँ अछूत मैं

आर्यव्रत को जीत ले ऐसा हुँ सूत पूत मैं

कुंती पुत्र हुँ मगर हुँ उसी को प्रिय मैं

इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हुँ क्षत्रिय मैं

आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये

भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे

बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे

काबिल दिखाया बस लोगो को ऊँची गोत्र के

सोने को पिघला कर डाला शोन तेरे कंठ में

नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने

यही था गुनाह तेरा, तु सारथी का अंश था

तो क्यो छिपे मेरे पीछे, मै भी उसी का वंश था

ऊँच नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था

वीरो की उसकी सूची में, अर्जुन के सिवा कौन था

माना था माधव को वीर, तो क्यो डरा एकलव्य से

माँग के अंगूठा क्यों जताया पार्थ भव्य है

रथ पे सजाया जिसने क्रष्ण हनुमान को

योद्धाओ के युद्ध में लडाया भगवान को

नन्दलाल तेरी ढाल पीछे अंजनेय थे

नीयती कठोर थी जो दोनो वंदनीय थे

ऊँचे ऊँचे लोगो में मै ठहरा छोटी जात का

खुद से ही अंजान मै ना घर का ना घाट का

सोने सा था तन मेरा,अभेद्य मेरा अंग था

कर्ण का कुंडल चमका लाल नीले रंग का

इतिहास साक्ष्य है योद्धा मै निपूण था

बस एक मजबूरी थी, मै वचनो का शौकीन था

अगर ना दिया होता वचन, वो मैने कुंती मात को

पांडवो के खून से मै धोता अपने हाथ को

साम दाम दंड भेद सूत्र मेरे नाम का

गंगा माँ का लाडला मै खामखां बदनाम था

कौरवो से हो के भी कोई कर्ण को ना भूलेगा

जाना जिसने मेरा दुख वो कर्ण कर्ण बोलेगा

भास्कर पिता मेरे, हर किरण मेरा स्वर्ण है

वन में अशोक मै, तु तो खाली पर्ण है

कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में, मेरा भी लहू जीर्ण है

देख छान के उस मिट्टी को कण कण में कर्ण है




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