How’s the Josh Poetry by Sangita Yaduvanshi

How’s the Josh Poetry by Sangita Yaduvanshi


How’s the Josh Poetry by Sangita Yaduvanshi

 

मेरी कविता का शीर्षक देश की राजनीति से सवाल पूछता है कि How's the Josh...?

अब इन्हें कुछ बताते है कि वो शहीद है ना.

वो मेरे सपनों में आते हैं और क्या कहते हैं कि......

 

ये सफर हमारी जिंदगी का आखरी होगा सोचा नहीं था…

मेरे मेहबूब की बालियों की छनक अब भी मेरे कानों में थी,

उन्हें मैंने रखा नहीं था…

मेरे बाप के जिंदगी भर की कमाई में,

मेरे सिवा शायद कुछ और नहीं था

और असल में जो भारत को नुकसान हुआ है, वो होना नहीं था

हमारी लड़ाई ना मुल्क से है ना जहांन से है

बस हमारी लड़ाई तो इस देश की सियासती मैदान से है

ये वक्त-वक्त पर अपनी औकात दिखा दिया करते हैं

और जब देश के लिए जान देने की बात आती हैं,

तो ये फौज की भर्तियां बढ़ा दिया करते हैं

अब वक्त आने पर कोई पक्षपात होगा, कोई कसर बाकी हो

हम फौजियों को कुछ दिन की छुट्टी दो साहब,

और इन नेताओं की सरहद पर तैनाती हो

वादा किया था की इस देश की रक्षा के लिए,

मौसम की हर एक जिद्द से लड़ जाऊंगा

बहन की शादी के लिए तो छुट्टी मंजूर कर दी सरकार ने,

पर अब वो किस हाल में है, ये कैसे जान पाऊंगा…

ये देश अपने आंखों से टपकते उस लहू को कैसे रोकेगा

जब 18 साल के फौजी का शव चिथड़ो में बिखरा हुआ,

बूढ़े बाप को बटोरते देखेगा

अब ये डीपी बदलना छोड़ो

सड़कों पर निकलना छोड़ो

क्योंकि तुम्हारी नाराजगी देश का हाल थोड़ी बदल पाएगी

तुम्हे क्या पता ये सरकार है,

एक कुर्सी के लिए जाने और कितना गिर जाएगी

यहां ये राजनीति अपने फायदे के लिए,

आतंक की चिंगारीओ को हवा दिया करते हैं

और उस बाप की जिंदगी भर की कमाई मुआवजों में लौटा दिया करते हैं…

इनके इन वादों में नेक इरादों में अब कुछ नहीं रखा है

कोई जा के समझाओ उन्हें की उस तिरंगे में और उस कफ़न में,

एक फौजी नहीं बल्कि पूरा देश लिपटा है...

 



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