Fareb se kya marta by Swarnika Ramanj Saini
Main
Ishq Me, Rishton Me, Dosti Me, Badnamiyon Se Kya Darta…
Main
Khud Hi Khud Ko Tabaah Kiye Betha Hoon, Fir Fareb se Kya Marta…
मैं इश्क़ में, रिश्तों में, दोस्ती में, बदनामियों से क्या डरता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
आईने के सामने बैठे उस शख्श को, मैंने घाव बड़े गहरे दिए है…
फिर मैं उसके जख्मों का मरहम क्या बनता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
मैं ताने में तो रिश्तों के बाने में, ख्यालो में तो बेतुके सवालों में,
ताउम्र कोयले की आंच बन तपा…
फिर मैं शमशान की उस अग्नि से क्या जलता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
मैंने चिरागो को सारे बुझा दिया, अँधेरे में आशियाँ बना लिया…
एक रौशनी आ रही थी चुपके से मेरे कमरे के भीतर, मैंने उसपे भी पर्दा गिरा दिया….
फिर मैं उजालो में क्या पलता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
मैंने रिश्तों को सारे मानो भुला दिया…
चलते चलते बीच राह में ना जाने कितनो से अपना हाथ तक छुड़ा लिया…
जो आना चाहते थे करीब मेरे, मैंने दूर से ही उन्हें कही अपने सीने से भी मिटा दिया…
फिर मैं किसी की राह क्या तकता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
मैंने पहले खुद का नाम किया फिर बदनाम किया फिर गुमनाम किया…
फिर मैं खुद की तलाश में क्या भटकता…
मैं खुद ही खुद को तबाह किये बैठा हूँ, फिर फरेब से क्या मरता…
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