Ravan Raag by Shekhar Deep

Ravan Raag by Shekhar Deep


Ravan Raag by Shekhar Deep

 

असुरों के साथ साथ देवों पर भी हावी है…

रावण मामूली नहीं, मायावी है…

हर साल की तरह इस साल भी कुछ नए नए राम बड़े हुए है…

अपने साथ ये कुछ वानर लेके मुझ रावण के खिलाफ खड़े हुए है…

तो चलो राम फिर ये बाण उठाओ…

पर मुझसे पहले लोगो के अंदर की हवस को मिटाओ…

इंद्रजीत से पहले इस जात पात की रीत को हराना…

और कुम्भकरण से पहले छोटी बच्चियों के हो रहे अपहरण को मिटाना…

अगर राम ये बाण काम ना आये, ये धनुष बेकार हो जाए,

तो फिर तलवार उठालो…

जिस इंसानियत की इज्जत तुम्हारी आँखों के आगे लूट रही है,

पहले उसे बचालो…

अगर ये सब कर सको तो राम फिर मुझसे नजरें मिलाना…

वरना कलयुग के राम वापस घर लौट जाना…

यूँ ही नहीं जल थल नभ में रावण का नाम छाया है….

काटकर सर मुझ रावण ने भोलेनाथ को चढ़ाया है…

और कभी बैठ के अकेला रोता था, आज पूरी प्रजा के साथ हसूंगा…

मैं रावण अब सौ ऐब भी रखूँगा तो जचूंगा…

और बहुत हुआ, अब खुद को ज़मीन से उठाकर आसमान में बैठाता हूँ…

बहुत हरा लिया लोगो को अब उनकी अकड़ को हराता हूँ…

और बात दिवाली की है ना,

तो तुम घी के जलाओ मैं खून के दिए जलाता हूँ…




Comments