Patang by Nidhi Narwal

Patang by Nidhi Narwal


Patang by Nidhi Narwal

 

हवा के झोंके जब जुल्फों को उड़ाकर जाते हैं

पलकों को सहला कर जाते हैं

तब लगता है कि अब जाकर

इस खुली हवा में सांस ली है खुल कर

इसी हवा के संग साथ बहती सी लगती है

जिंदगी हंसकर मुझसे कुछ कहती सी लगती है

चलो चलें कहकर हाथ बढ़ाती है हाथ थमाने को

पास आने को पुकारती है मुझे साथ जाने को

और मैं आँखों में ख्वाबों के बने पंख लिए,

जिन्दगी का हाथ कस के पकड़ती हूं आगे बढ़ती हूं

इतने में ही पीछे से एक अदृश्य डोर जो मुझसे बंधी हुई है जिससे मैं बंधी हुई हूं

वो मुझे झटके से अपनी तरफ खींच लेती है

बार बार, ऐसा लगता है कि मैं कोई रंग बिरंगे पतंग हूं

जो मस्त मल्लिका के भाती अदा से उड़ रही हैं, नाजनीन हवा से लड़ रही है

मगर मेरी एक बेरंग डोर है जो किसी के हाथ में है

या यूं कहूं कि ऐसा लगता है कि मेरी परवाज एक रील में लपेट रखी है,

और कोई लगातार मुझे ढील दे रहा है बेबाक होकर जिन्दगी से मिलाने को

 और दूसरे ही पल झटके से डोर को वापस खींच लेता है मुझे मेरी हदें याद दिलाने को

और जितनी बार भी ये डोर तंग होती है

मुझे ये महसूस होता है कि मैं उड़ नहीं रही

बल्कि मुझे कोई अपने मुताबिक उड़ा रहा है

और ये हवाएं उसका बखूबी साथ निभा रही हैं

जो उसके हक में चलती जा रही हैं वो भी मेरी नाक के बिल्कुल नीचे से

ऐसा लगता है कि मुझे उड़ने के लिए बनाया गया

बेशक मुझे उड़ने के लिए बनाया गया बढ़िया से तैयार किया सजाया गया

मगर मेरे पंख किसी और के हाथ में थमा दिए,

और बनाने वाले ने महज तंज करने को मेरी तकदीर में उड़ान लिख दिए

हर शख्स को अपने हाथ में केवल मेरी डोर चाहिए

पर कितने लोगों तो शायद बेसब्री से इस रंग बिरंगी पतंग के कट जाने की राह तकते होंगे,

ताकि एक कटी हुई पतंग को किसी गली मोहल्ले में वो गिरा हुआ पा सके,

और फिर उसे हासिल करके अपने ढंग से उड़ा सके

और मैं पागल हूं एक पागल पतंग,

जो आसमान की ऊंचाइयों को छू कर बार बार,

ये अनदेखा कर देती है कि मेरी एक डोर है

जो वहां किसी के हाथ में है

 



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