Mushkil Hai by Nidhi Narwal

Mushkil Hai by Nidhi Narwal


Mushkil Hai by Nidhi Narwal

 

बहुत सारे लोग है ऐसे, जिनको कभी ना कभी तो किसी ना किसी से तो मोहब्बत हुई होगी, या फिर है अभी भी। लेकिन हर किसी की मोहब्बत मुकम्मल नहीं होती, लेकिन कई बार मोहब्बत का ना मुकम्मल होना ही मोहब्बत का मुकम्मल होना होता है। बड़े सारे लोग अक्सर तो यही कानून समझाने में लगे रहते है कि अगर प्यार करते हो उससे तो जाओ उसके पास, तो बड़ा ही मुश्किल हो जाता है जब हालात और नाते कुछ दूर तक का सफर तय करके कुछ ऐसे मोड़ ले लेते है कि खुद को ये समझना पड़ता है

 

कि अगर प्यार करते हो उससे तो मत जाओ उसके पास…

क्योंकि शायद कहीं ना कहीं उसकी जिंदगी में अब,

तुम्हारी ना मौजूदगी ही अब उसके लिए मुनासिब है…

हाँ शायद खुश तो नहीं है वो,

पर उसके हिस्से अब वो अँधेरे नहीं रहे,

जो तुम्हारी जिंदगी में खुर्शीद हर शाम ढलकर के तुम्हारी झोली में भर देता है…

हाँ बेशक, बड़ा मशरूफ तो नहीं है वो पर महफूज है…

क्योंकि उसके हिस्से अब वो तन्हाईयाँ नहीं रही…

जो तुम्हारे दिल दुखाने पर उसको हर शाम नसीब हो जाया करती थी…

हां शायद अब भी घाव है, पर वो पायाब है…

बड़ा ही मुश्किल होता है खुद को समझाना…

कि अब लौट कर के अब उसके ख्यालों तक नहीं जाना…

जाने कितने ख्वाब जेर होने लग जाते है…

पलकों पर नशीं आसूं भी तुम्हे छोड़ जाने को तैयार हो जाते है…

जब ये पता हो तुम्हे कि अब वक़्त को सहारा बना कर के,

उसके ज़हन से अपनी हर याद वापस लेकर आनी है…

जबकि तुम ये जानते हो कि तुम्हारी आखिरी साँस के साथ तुम्हारा जिस्म छोड़ रही,

वो एक आखिरी याद भी उसी की होगी…

 

तुम कितना ही समेट लो वो बिखरेगा…

समझ लो दिमाग से कमबख्त दिल तो मुकरेगा…

 

कि अब इस तारिख को लेकर के,

उसकी सुबह से दूर जाने का वक़्त गया है…

कि तुम बस एक रात हो और उसकी सुबह का आफ़ताब उसे सौंपकर के,

लौट जाने का वक़्त गया है…

मालूम है दिल को और रूह भी अच्छी तरह से वाकिफ है…

कि तुम उसके हिस्सों में दाखिल रहने के लिए, दाखिल नहीं हुए थे उसकी जिंदगी में..

तुम तो बस कुछ किस्सों में दाखिल रहने के लिए आये थे…

हाँ ये सब ठीक है पर हर सच से गैर कहीं कोने में बैठी,

एक आखिरी उम्मीद होती है…

जो तुम तक अपनी आवाज पहुँचाने के इस्तियाक में रहती है,

कि तुम ठहर जाओ वो वापस आएगा…

इस कम्बख्त एक आवाज के आगे बाकी की वो सारी उलझी सच्ची आवाजें फीकी पड़ जाती है…

और मुश्किल हो जाता है, इस एक आवाज का क़तल कर इसको वही कहीं अंदर ही दफना देना…

मुश्किल है पर करना होगा…

मुश्किल है पर जाना होगा…

मुश्किल है पर उसके हर टुकड़ें को उस तक वापस पहुँचाना होगा…

अरे फिर बेशक वो टुकड़ों में होगा पर वो पूरा होगा…

दिल की एक एक धड़कन को बैठाकर समझाना ये मुश्किल है,

अरे पर दिल तो जानता है…

कि ये जो इश्क़ तुम्हारी हर सांस, हर लफ्ज़, हर हर्फ़, हर बात, हर एहसास में उसके लिए है…

ये उसको तकलीफ के सिवाय कुछ याद रखने को नहीं दे सकता, नहीं देगा…

मुश्किल है पर अब मुनासिब है मन समझा लेना ही…

कि अगर तुम्हे बेपनाह मोहब्बत है उससे तो उससे फासलें तो तुम्हे उससे बनाने होंगे…

मुश्किल है आसान तो नहीं, पर जाना होगा…




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