Tujhe Paane Ki Khwahish Mein by Mushtaque Ahemad Mushtaque

Tujhe Paane Ki Khwahish Mein by Mushtaque Ahemad Mushtaque


Tujhe Paane Ki Khwahish Mein by Mushtaque Ahemad Mushtaque

 

मेरा दिल गुफ्तगू का जैसे ही आगाज़ करता है…

तेरी पाजेब का घुंघरू बहुत आवाज करता है…

हवा उसकी मुखालिफ हो,के हामी क्या गरज उसको,.

परिंदा सिर्फ अपने वास्ते परवाज करता है…

 

सदा के जैसा बिखर जाऊँ और सुनाई ना दूँ…

मै इतना तेरे करीब आऊँ के दिखायी ना दूँ…

ये मेरे अश्क है, मेरे गमो का सरमाया,

तू दो जहाँ भी मुझे दे तो ये कमाई ना दूँ…

मै चाहता हूँ के मै भी हवा सा बन जाऊँ,

के तुझको छूता रहूँ और तुझे दिखाई ना दूँ…

 

तेरे कूचे मे मेरी कुछ तो जगह रहने दे…

बन के जर्रा तेरी गलियो में पड़ा रहने दे…

हम तो मुश्ताक है आँखो की छलकती मय के,

अपने मयखाने का दर हम पे खुला रहने दे…

 

तुझे पाने की ख्वाहिश में कहाँ जाऊँ,किधर जाऊँ…

तलब दरिया की रखूँ या के कतरे मेँ उतर जाऊँ…

मै वो किरदार हुँ जो अब कहानी मे नही मिलता,

समेटे जात के औराक ये बेहतर है मर जाऊँ…

हवा मेरे ताक्कुब मे लगी है एक मुद्दत से,

मै अपनी रोशनी ले करके अंधेरे में किधर जाऊँ…

सितारे,चाँद,सूरज राह मेरी तक रहे होगें,

बचा है काम थोड़ा,खत्म हो जाये तो घर जाऊँ…

 

छोड़ ताजो तख्त को बरगद तले आसन लिया….

जिंदगी जिस वक्त समझी हमने विष मंथन किया…

हैसियत पर क्या कहूँ अपनी,बस इतना अर्ज है,

चाँद जलता है फलक पर देख कर मेरा दिया…

रौ मे था सब छोड़ कर तेरी तरफ बढने लगा,

और थोड़ी दूर चल कर खुद से ही टकरा गया…

 

कह दो दुनिया से ना उलझे किसी दिवाने से…

ये अजब लोग है, जी उठते है मर जाने से…

लोग घबरा के चले जाते है घर को अपने,

और एक हम है कि घबराते है घर जाने से…

 

दिल लुभाते हुये मंजर से निकल आते है…

वो भी क्या लोग है जो घर से निकल आते है…

हमसे दिवाने ठहर जाये अगर साहिल पर,

जितने मोती है समुंदर से निकल आते है…

बेसबब हमको दबाने की ना कोशिश करना,

हम वो सब्जे है जो पत्थर से निकल आते है…

हमसे रातो की चमक जिंदा हैमुशताक अहमद’,

शाम होती है तो हम घर से निकल आते है…

 

दूसरो के लिये मर जाये, ये कब होता है…

अब तो बस मार काये नामो नसब होता है…

पूछने जाओ तो पाबंदी जमाने भर की,

और करने पे जो जाओ तो सब होता है…

 

इस आबो-गिल से ढेर से सूरज कसीद कर…

फरसूदा इक ख्याल हुँ मुझको जदीद कर…

कर ले वो मुझको देख के अंदाजा--सफर,

अये अफताब अपनी तमाज़त शदीद कर…

रख आँसुओ को आँख मे अपनी संभाल कर,

तू क्या करेगा चाँद सितारे खरीद कर…

कब तक चिराग अपना हवा से बचायेगा,

उठ और हवा को एक तमाचा रसीद कर….

 



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