Mujhko Accha Sa Koi Jakham Ata Kar Do Na by Zubair Ali Tabish

Mujhko Accha Sa Koi Jakham Ata Kar Do Na by Zubair Ali Tabish


Mujhko Accha Sa Koi Jakham Ata Kar Do Na by Zubair Ali Tabish

 

मै क्या बताऊ वो कितना करीब है मेरे,

मेरा ख्याल भी उसको सुनायी देता है…

वो जिसने आँख अता की है देखने के लिये,

उसी को छोड़ के सब कुछ दिखायी देता है…

 

खाली बैठे हो तो एक काम मेरा कर दो ना…

मुझको अच्छा सा कोई जख्म अता कर दो ना…

ध्यान से पंछियो को देते हो दाना पानी,

इतने अच्छे हो तो पिंजरे से रिहा कर दो ना…

जब करीब ही गये हो,तो उदासी कैसी?

जब दिया दे ही रहे हो,तो जला कर दो ना…

 

इसी खुशी ने मेरा दम निकाल रखा है…

कि उसने अब भी मेरा गम संभाल रखा है…

मै खाक ही तो हुँ,आखिर मेरा बनेगा क्या?

मुझे कुम्हार ने चक्कर मे डाल रखा है…

मेरे खिलाफ मिले है कई सबूत मगर,

मेरे वकील ने जज को संभाल रखा है…

 

सितम ढाते हुये सोचा करोगे…

हमारे साथ तुम ऐसा करोगे…

अंगूठी तो मुझे लौटा रहे हो,

अंगूठी के निशां का क्या करोगे

मै तुमसे अब झगड़ता भी नही हुँ,

तो क्या इस बात पर झगड़ा करोगे

वो दुल्हन बन के रुखसत हो गयी है,

कहाँ तक कार का पीछा करोगे

 

भीड़ तो ऊँचा ही सुनेगी दोस्त…

मेरी आवाज गिर पड़ेगी दोस्त…

मेरी तकदीर तेरी खिड़की है,

मेरी तकदीर कब खुलेगी दोस्त

गाँव मेरा बहुत ही छोटा है,

तेरी गाड़ी नही रुकेगी दोस्त…

दोस्तीलफ्ज ही मे दो है दो,

सिर्फ तेरी नही चलेगी दोस्त…

 

वो क्या है के फूलो को धोखा हुआ था…

तेरा सूट तितली ने पहना हुआ था…

मुझे क्या पता बाढ मे कौन डूबा?

मै कशती बनाने मे डूबा हुआ था…

 

मै शायद उसी हाथ मे रह गया हुँ,

वही हाथ जो मुझ से छूटा हुआ था…

किसी की जगह पर खड़ा हो गया मै,

मेरी सीट पर कोई बैठा हुआ था…

पुरानी गजल डस्टबिन मे पड़ी थी,

नया शेर टेबल पर रखा हुआ था…

तुम्हे देखकर कुछ तो भूला हुआ हुँ,

अरे याद आया,मै रूठा हुआ था…

 

अपने बच्चो से बहुत डरता हुँ मै…

बिल्कुल अपने बाप के जैसा हुँ मै…

जिनको आसानी से मिल जाता हुँ मै,

वो समझते है बहुत सस्ता हुँ मै…

जा नदी से पूछ सैरावी मेरी,

किस घड़े ने कह दिया प्यासा हुँ मै…

मेरी ख्वाहिश है के दरवाजा खुले,

वरना खिड़की से भी सकता हुँ मै…

दूसरे बस तोड़ सकते है मुझे,

सिर्फ अपनी चाबी से खुलता हुँ मै…

 



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