Kanha To Ab Ban Gaya Tumhara Pagal by Kanha Kamboj

Kanha To Ab Ban Gaya Tumhara Pagal by Kanha Kamboj


Kanha To Ab Ban Gaya Tumhara Pagal by Kanha Kamboj

 

देखो है कितना बेचारा पागल…

दर बदर भटकता है बेसहारा पागल….

एक बार को तो आया तरस मेरी हालत पर,

फिर उन्होंने कहा मुझे दोबारा पागल…

अभी ना टेक पैर पानी की सतह पर,

अभी तो बहुत दूर है किनारा पागल…

हमने एक खत में लिखा हाल--दिल अपना,

और उस खत के आखिर में लिखा तुम्हारा पागल….

वो तो गाँव में है फिर ये किसने,

उसकी आवाज में हमें पुकारा पागल…

अब तो जहन तक से पागल हो गया है कान्हा,

अब तो क्या ही बनाओगे तुम हमारा पागल…

 

इस खेल में गर मोहरें तुम्हारे भी होते…

हम अफ़सोस तक ना करते गर हारे भी होते…

हमने सीखी नहीं बेवफाई इश्क़ में,

वरना गर किसी और के होते तो तुम्हारे भी होते…




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