Fir Cheekh Utha Mera Gala by Kanha Kamboj

Fir Cheekh Utha Mera Gala by Kanha Kamboj


Fir Cheekh Utha Mera Gala by Kanha Kamboj

 

कहते है किस्मत का जो है खुदा लिखा है…

यानी पहले से मेरा खता लिखा है…

जलाकर उस खत को रहा हूँ लिखा था जिसमे,

मिलने आओ अंदर मेरा पता लिखा है…

 

जिंदगी किसी की याद में बसर हो रही है…

है उसी की दुआ जो अब तक असर हो रही है…

तुम तो कहती थी कोई ताल्लुक नहीं रखना,

फिर क्यों तुम्हारी गज़लें मुझे नज़र हो रही है…

कमर से बाँध लो कमरबंद बनाकर,

या मुझे बाँधने में अब भी कोई कसर हो रही है…

 

तू हर दफा अपनी चला, बस कर

मुझे सबसे ज्यादा ये खला, बस कर

चीखते रहे तेरा नाम तूने ना सुना,

फिर चीख उठा मेरा गला, बस कर

मैं बेहया, बेरहम, बेगैरत,

अब कुछ और ना कह भला, बस कर

तुम चाहती हो हम भी हो जाये बेवफा,

नहीं सीखनी तुमसे ये कला, बस कर

 

देखो है कितना बेचारा पागल

दर बदर भटकता है बेसहारा पागल

एक बार को तो आया तरस मेरी हालत पर,

फिर उन्होंने कहा मुझे दोबारा पागल

अभी ना तक पैर पानी की सतह पर,

अभी तो बहुत दूर है किनारा पागल

हमने खत में लिखा हाल दिल अपना,

और उस खत के आखिर में लिखा तुम्हारा पागल

मैं चाहता था किस्से इश्क़ के मशहूर हो,

किसे करना था यहाँ बस गुजारा पागल

वो तो गाँव में है फिर ये किसने,

उसकी आवाज में हमें पुकारा पागल

अब तो ज़ेहन तक से पागल हो गया है कान्हा,

अब तो क्या ही बनाओगे तुम हमारा पागल

 



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