Zindagi By RJ Vashishth

Zindagi By RJ Vashishth


Zindagi By RJ Vashishth

 

ये ज़िन्दगी भी कैसी पहेली है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

हर बार सताती और हर बार मनाती सहेली है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

 

कभी उस खास शक्श कि आस है..

तो कभी खुद खास बनने कि प्यास है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

 

कभी- कभी तो खुशियों से झोली भर देती है..

तो कभी- कभी उसी झोली में छेद कर देती है..

कभी- कभी जहा नज़र पहुंचे वहां उस साथी को बिठा देती है..

और अगर वहां पर ये जोगी पहुंच जाये तो वही साथी मृगजल बनकर दूर बैठा हुआ होता है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

 

कभी कभार तो कितने सारे दोस्तों कि टोली दे देती है..

तो कभी कभार अकेलेपन के सावन में भिगो देती है..

कभी कभार अकेले अकेले हसने का मौका भी देती है..

तो कभी कभार आईने कि झूटी मुस्कान में फसा देती है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

 

कभी कभार तो सुनने वाला थक जाये उतने लफ्ज़ दे देती है..

तो कभी कभार सुनने के लिए तरस जाये वैसे सन्नाटे भी देती है..

कभी कभार तो मीठा सपना दिखाती है..

तो कभी कभार उसी सपने को तोड़ के नींद से जगा देती है..

ये ज़िन्दगी भी अजीब पहेली है..

 

बस एक दरख्वास्त है इस अजब गज़ब ज़िन्दगी से कि कभी तो मौका दे इस पहेली को सुलझाने का..

तो मेरी बात को सुनके ज़िन्दगी बोली रहने दे मुझे सुलझाने में तू और उलझ जायेगा..

रहने दे, मेरे लिए तो तू इतना कहके खुश रहे तो अच्छा है कि ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

हर बार सताती और हर बार मनाती सहेली है..

कभी उस खास शक्श कि आस है..

तो कभी खुद खास बनने कि प्यास है..

ये ज़िन्दगी भी एक अजीब पहेली है..

 



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