Musalmaan Ishq by Shekhar Deep

Musalmaan Ishq by Shekhar Deep


Musalmaan Ishq by Shekhar Deep

 

मेरे दिल के पिंजरे में कैद एक अधूरा सा अरमान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

मैं घर से निकला था कॉलेज के पहले दिन…

क्या खबर थी वही हो जाएगी लव ऐट फर्स्ट साईट वाली थिंग…

सफ़ेद दुपट्टे को बनाया उसने अपने चेहरे का दरबान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

हाँ वो गौरी, मैं काला, वो मय सी मैं प्याला…

वो ठहरे दरिया सी सिंपल, सोबर और साइलेंट…

मैं बेअदब, बद्तमीज और कभी कभी वायलेंट…

फिर भी ना जाने क्या उसे जानने के लिए, पहचानने के लिए,

हाँ शायद थोड़ा चाहने के लिए, मेरा मन बहुत परेशान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

धीरे धीरे बातों का एक किस्सा शुरू हुआ…

उसका मेरे दिल में, मेरा उसके दिल में एक हिस्सा शुरू हुआ…

फिर क्या था, कभी कॉलेज, कभी कैंटीन, अलग अलग बहानो से दिल मिलने को बहुत परेशान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

फिर पता नहीं कब वो गाय को माता कह के बुलाने लगी…

और मैं हर मस्जिद और दरगाह पे सजदे लगाने लगा…

बुरखे के पीछे वो काजल वाली आँखे मुझे चाहने लगी…

और मैं जनेऊधारी उसे चाहने लगा

वो कभी ना ख़तम होने वाली ज़मीन थी और मैं खुला आसमान था….

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

वो दिवाली पे छोटे छोटे दिए जलाती थी…

और मैं ईद पे अपने दोस्तों को गले लगाता था…

मुझे देखकर वो अपनी नजरें बहुत नज़ाकत से झुकाती थी…

और मैं अपने दोस्तों के आगे शर्मा जाता था…

हां उसे समझनी थोड़ी "गीता" और मुझे जानना थोड़ा "क़ुरआन" था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

अच्छा एक दिन माँ से मिलाया उसे….

मेरी बहुत अच्छी और प्यारी दोस्त है, ये कहके प्यार दिलाया उसे…

हाँ मैं भी एक दिन उसके घर गया…

मैं उसका अच्छा और खास दोस्त हूँ, ये उसके घरवालों को पता चल गया…

मुझे उसके घर में अपनापन और उसे मेरे घर में प्यार मिला…

शायद कौम अलग है पर इंसानियत एक, ये सोच के मेरा दिल थोड़ा सा खिला…

फिर क्या यार बाकि उसके चाचा चाची, मामा मामी, मेरा भी तो समाज खानदान था….

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

एक दिन सोचा क्या मैं इश्कजादे का परमार और वो मेरी ज़ोया बन पायेगी…

क्या हम दोनों की मोहब्बत दुनिया से वीर ज़ारा की तरह मोहब्बत कर पायेगी…

यार तारा और सकीना में तो हिंदुस्तान वर्सेज पाकिस्तान था…

विलेन मेरी स्टोरी में सिर्फ चारलोग और खानदान था…

शायद इन सब को पता नहीं कि उसे आरती का महूर्त और मुझे पता वक़्त--अज़ान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

फिर हमने सोचा यार छोड़ो, ये तुम्हारे और मेरे प्यार को नहीं समझेंगे…

ये मचाएंगे दंगे और तुम्हे और मुझे भला बुरा कहके कोसेंगे…

हाँ, इन्ही सब बातों ने उजाड़ा मेरा इश्क़ का जहान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 

पर अब सुनो समाज, सुनो खानदान, सुनो मुखियों और सुनो चार लोग…

लाकर दो वो नजर मुझे, जो प्यार करने से पहले बताये, ये हिन्दू और ये मुसलमान है…

ये विधि और ये विधि का विधान है…

या चलवाओ देश में कुछ ऐसी रिवायतें,

जो प्यार करने से पहले फॉर्म भरवाए…

या जारी कर दो पूरे मुल्क में क़ानून,

कि प्यार करने से पहले अपने दिलो को आधार से लिंक करवाए…

और अगर कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम खुदा से तो डरो…

बहुत चिंता है आपको धर्म और जात की, कम से कम ऐसा प्रेटेंड तो मत करो…

दुनिया में ऐसे और भी देश है जो अपना परचम लहरा रहे है…

शायद उनके मुद्दे जात और धर्म नहीं है, इसलिए वो हमे ठेंगा दिखा रहे है…

बिना किसी मंजिल की राह पर मैं चल रहा अकेला और परेशान था…

यार इसमें मेरी क्या गलती, अगर मैं हिन्दू और मेरा इश्क़ मुसलमान था…

 



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