Meri Aankhon Mein Dekh by Nidhi Narwal

Meri Aankhon Mein Dekh by Nidhi Narwal


Meri Aankhon Mein Dekh by Nidhi Narwal

 

मेरी आँखों में देख, मुझसे नजरें मिला….

ये जो मेरी जांघो के बीच हवस के मारे,

तू अपना खोखला जहाँ देखता है…

मेरी आँखों में देख, मुझसे निगाह मिला, कायनात का दीदार कैसा लगता है…

मेरी जुल्फों में ये जो उँगलियाँ फेरता है तू,

महक हवस की चढ़ जाती है इनमे…

मेरी नजरें वाकिफ हो जाती है तेरी भूख से,

आग लहू की लग जाती है इनमे…

तेरी प्यासी सांसे मेरी हर सांस को छूती है,

घिन्न आती है खुद की सांसो से मुझे…

जो तेरे अंदर का शैतान कहता है मुझसे,

घिन्न आती है तेरी उन बातों से मुझे…

वीराने में मुझे लेकर सोचता है बेकस है तू,

तेरी तो रूह तक को हैवानियत ने घेरा है…

इस आफताब की आग में जितनी रौशनी नहीं,

सुन जालिम उतना तेरे जमीर में अँधेरा है…

मेरे कंधे पर से कोहनी तक नाखून फिसलते है तेरे,

एहसास बलात्कार का रूह को होता है…

जिस्म हिम्मत जुटाए, धकेलता है लड़ता है तुझसे,

मेरे अंदर के इंसान को मगर दर्द होता है…

मेरे घुटने मुड़ जाते है, हथेलियां चेहरा छुपाती है,

जानवर कहीं के तू मगर रुकता नहीं…

चुपचाप खुदा भी रोता है, शर्मिंदा बहुत होता है,

बेरहम, बद बेशर्म, तू मगर झुकता नहीं…

मेरा दुपट्टा हवा में उछाल कर खेलता है, हँसता है तू,

तेरी माँ का दामन देखना शर्मिंदा होगा जरूर…

बदन को मेरे नंगा कर अकेले में देखता है क्या तू,

तेरा ये गुनाह भी देखना एक दिन नंगा होगा जरूर…

तेरी माँ, तेरी बहन, तेरी महबूबा सलामत है ना,

मगर डर तो बेशक उनको भी लगता है…

बचाती होगी खुद को ऐसी हैवानियत से वो,

मगर एक हैवान तो उन्ही के घर में बसता है…

मेरी कलाइयों को मरोड़ कर, मुँह को दबोच कर,

जो मुझे बाजी सा अब तक फेंका है तूने…

ठहर जा खुदा को तो दूर रखूंगी इस मसलें से मैं,

मगर कायनात का कहर कहाँ देखा है तूने…




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