Main Aisi Nahi Thi by Nidhi Narwal

Main Aisi Nahi Thi by Nidhi Narwal


Main Aisi Nahi Thi by Nidhi Narwal



जिस रस्ते पे में चल रही थी…
मुझे मालूम तक नहीं की जाना कहा है…
फिर भी चल रही हूँ…
और जिस रस्ते से होकर मैंने यहाँ,
तक का सफर तय किया है…
उस रस्ते पर युही यु मेरे कदमो के निशान मुझे दिखाई देते है…
मगर फिर भी में मुड़कर उस और वापस नहीं जा सकती…

मन करता है काश कोई एक तो नामुमकिन
ख्वाइश मांगने का हक़ तो दिया होता खुदा ने,
तो वापस वह तक जाती जहा से सब शुरू हुआ था…
मोहब्बत के लिए नहीं सपनो के लिए नहीं,
हसरतो के लिए आगाज़ तक जाती…
कुकी मुझे मिलना है खुद से और मिलना है,
उन लोगो से जोकि तब मेरे साथ थे…
जबकि दिन और हम कुछ और ही थे…
आज वो हूँ और अनजान हूँ उन लोगो से जो मेरे बगल में,

मेरे सामने फगत बैठे है या खड़े है…
है मगर इन चेहरों से तो वाक़िफ़ हूँ…
मेहबूब से बिछड़ जाना बोहोत दर्दनाक होता है…
मेहबूब से बिछड़ जाना दिल में खलील कर देता है…
पर यक़ीन मनो खुद से बिछड़ जाना बेहतर है,
कियो तुम फोटो हाथ में लेकर
लोग दर लोग पूछ नहीं सकते की इसे देखा क्या?

तुम अखबार में इस्तेहार नहीं छपवा सकते की ये लापता है…
तुम छुप छुप कर देख नहीं सकते,
मालूम नहीं करवा सकते,
की वो इंसान जो खो गया है वो खैरियत से है भी या नहीं…

तुम अपनी हालत का भला ज़िम्मेदार किसको टेहराओगे…
की कौन छोड़ गया तुम्हे यहाँ,
कियुकी वो इंसान तो तुम खुद हो…
तुम अगर रुककर एक जगह खड़े होकर शांति से…
याद करने की भी कोशिस करोगे ,
तुम कैसे हुआ करते थे…
तो यकीन मनो यादो की जगह बस हाल ही मिलेंगे…

ये जीती जगती मौत के जैसा है,
तुम ज़िंदा हो .तुम ज़िंदा हो
मगर तुम्हारा ज़नाज़ा बिना चार कंधो के ही उठ चूका है…

ऐसे में तुम बस बैठ कर अफ़सोस कर सकते हो…
और वो करके भी तुम्हे बस अफ़सोस ही मिलेगा…
मगर मुझे एक बार रूबरू होना है खुद से…
मुझे देखना है,
मुझे जानना है की आज दिन में आखिर कितनी बर्बाद हूँ…
या और कितनी और मोहलत बची है मेरे पास,
ज़िन्दगी तक वापस आने की…
में ये एक खाल का लिबास जिसमे खवाब, मोहब्बत, दर्द,
जिसम जु कुछ भी नहीं है…

में ये नहीं हूँ,
में मेरी रूह को कही पीछे छोड़ आयी हूँ…
मुझे वापस जाना है…
में अनजान बानी बोहोत दूर तक आ चुकी हूँ…
मुझे एक बार आगाज़ तक ले चलो,
यकीन मनो,
मैं ऐसी नहीं हूँ




Comments