Agar Hum Bewafa Hote To Tumhare Bhi Hote by Kanha Kamboj
देखो है कितना बेचारा पागल…
दर बदर भटकता है बेसहारा पागल….
एक बार को तो आया तरस मेरी हालत पर,
फिर उन्होंने कहा मुझे दोबारा पागल…
अभी ना टेक पैर पानी की सतह पर,
अभी तो बहुत दूर है किनारा पागल…
हमने एक खत में लिखा हाल-ऐ-दिल अपना,
और उस खत के आखिर में लिखा तुम्हारा पागल….
मैं चाहता था किस्से इश्क़ के मशहूर हो,
किसे करना था यहाँ बस गुजारा पागल…
वो तो गाँव में है फिर ये किसने,
उसकी आवाज में हमें पुकारा पागल…
अब तो जहन तक से पागल हो गया है कान्हा,
अब तो क्या ही बनाओगे तुम हमारा पागल…
जान थोड़ा संभलो अंधेरा है…
या कमर से जकड़ लो अंधेरा हैं…
फिर कभी सुनाना डरावना किस्सा कोई,
फिलहाल मेरी बात समझलो अंधेरा हैं…
यूँ बेबात ना लड़कर जाओ दूर हमसे,
यार पास रहकर झगड़ लो अंधेरा हैं…
मैं उसे गले लगाने वाला था वो चिल्ला कर बोली,
चुपचाप बस हाथ पकड़ लो अंधेरा हैं…
जिस मासूम को सिखाया कहानी लिखना हमने,
वो हमें सिखा रहा हैं किरदार बदल लो अंधेरा हैं…
और फिर कभी करना इधर उधर की बातें कान्हा,
कान्हा फिलहाल तुम अपने मन की कर लो अंधेरा हैं…
इस खेल में गर मोहरें तुम्हारे भी होते…
हम अफ़सोस तक ना करते गर हारे भी होते…
हमने सीखी नहीं बेवफाई इश्क़ में,
वरना गर किसी और के होते तो तुम्हारे भी होते…
तुम्हारा हर जख्म हम गवारा कहते है…
है यही सच लो हम दोबारा कहते है…
नहीं मिलना तो जान साफ़ कह दीजिये,
नजर झुकाने को तो हम इशारा कहते…
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