Karni Hai Thodi Fariyaad By RJ Vashishth
ए हवा
तू
कल
उड़
चली
जाना..
रुक जा
इस
सर्द
रात
में..
मेरे संग
बैठ
जा,
बैठ
जा
थोड़े
पल..
रुक जा
करनी
है
थोड़ी
फ़रियाद..
हर दस्तक,
हर
खनक
पे
काहे
आये
उनकी
याद..
थी वो
हवा
सी
बहती
रहती
थी..
छू के
गुज़रती
थी,
लुभाती
थी..
परेशानी सी
थी,
पर
मेरी
सी
थी..
फिर क्यों
इस
बार
जाकर
वो
वापस
नहीं
आई..
करनी है
थोड़ी
फ़रियाद..
फरी- फरी
उनको
याद,
उनको
ना
आये
इस
पिया
कि
याद..
ऐसा कैसा
था
नए
प्यार
का
स्वाद
कि
सुनाई
ही
ना
पड़ी
इस
दिल
कि
रसोई
का
साद..
करनी है
थोड़ी
फ़रियाद..
क्यों ना
कहा
कि
वादे
तोड़ने
के
लिए
ही
होते
है..
क्यों ना
कहा
कि
यादों
के
सागर,
दिल
दे
किनारे
छोड़ने
के
लिए
होते
है..
क्यों ना
कहा?
करनी है
थोड़ी
फ़रियाद..
पुकारते रहते
है
वही
पेड़
के
पत्ते..
जिसके ऊपर
बैठ
के
गुज़ारे
थे
हमने
दिन
रात
हसते-
हसते..
गूंजते है
आज
भी
खर्राटे
उस
Watchman के..
जिसके सामने
गाड़ी
पार्क
करके
हाथ
हमने
थामे
थे
डरते-
डरते..
क्यों आज
वो
सारी
लकीरे
एक
साथ
ना
हुई...
ए हवा
तू
रुक
जा..
करनी है
थोड़ी
फरियाद..
क्यों हर
दस्तक
हर
खनक
पे
आये
उनकी
याद..
ए हवा
तू
रुक
जा..
करनी है
तुझसे
थोड़ी
बात..
अकेले नहीं
काटनी
है
ये
काली
सी
रात..
ए हवा
तू
रुक
जा
बस
इस
रात
...
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