Kanha Ko Bebas Bana Gayi Wo by Kanha Kamboj
अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी…
उसके जैसी ही मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी…
कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत,
मगर कुछ लोगों में बातें हमें खानदानी करनी पड़ी…
अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का,
गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी…
और मेरे ज़हन से निकला ही नहीं वो शख्स,
नए महबूब से भी बातें पुरानी करनी पड़ी…
पहले उससे मोहब्बत रूह तलक की मैंने,
फिर हरकतें मुझे अपने जिस्मानी करनी पड़ी…
एक छाप रह गई थी उसकी मेरे जिस्म पर,
अकेले में मिली तो वापिस निशानी करनी पड़ी…
हाथ में ताश की गड्डी ले कान्हा को जोकर समझती रही,
फिर पत्ते बदल हमें बेईमानी करनी पड़ी…
जैसे चलाता हूं वैसे नहीं चलता…
कैसे बताऊं उसे यार ऐसे नहीं चलता…
खुदको मेरा साया बताता है,
फिर क्यों तू मेरे जैसे नहीं चलता…
तेरे इश्क में हूं बेबस इतना मैं,
जवान बेटे पर बाप का हाथ जैसे नहीं चलता…
मुझे खिलौना समझती हो तो ये बात भी सुन लो,
अब ये खिलौना पहले जैसे नहीं चलता…
दर्द, दिमाग, वार, ये शायद जंग है,
मेरी जान मोहब्बत में तो ऐसे नहीं चलता…
बस यही बातें हैं इस पूरी गजल में कान्हा,
कभी ऐसे नहीं चलता कभी वैसे नहीं चलता।
कहती हैं कि तुमसे ज्यादा प्यार करता है,
उसकी इतनी औक़ात है क्या…
और रकीब का सहारा लेकर कान्हा को भुला दूंगी,
तेरा दिमाग खराब है क्या…
Comments
Post a Comment
Thank You for Your Comment