Bachpan By Nidhi Narwal

Bachpan By Nidhi Narwal


Bachpan By Nidhi Narwal 

 

अब कहाँ दिल बेवजह ही मुस्कुराता दिखता है…

अब कहाँ कोई चुटकुले से गुदगुदाता दिखता है…

अब नहीं मिलते है यारो, यार भी जिगरी मुझे,

अब कहाँ यूँ ही कोई, मुझे बुलाता दिखता है…

अब नहीं महल है वो जो रेत में बनाये थे…

अब नहीं पतंग है जो शौक से उड़ाए थे…

अब नहीं वो जहाज है और ना ही वो नाव है,

कागजो से खेलने को जो कभी बनाये थे…

हसरतें है झूम लूँ, शीशे में खुद को चूम लूँ…

बरसात में छतरी बना गली गली मैं घूम लूँ….

बादलों से झांककर मैंने आसमान ये छांट लूँ…

हंसी ख़ुशी ये यार से, हंसी ख़ुशी मैंने बाँट लूँ…

भीड़ ही में रो पडूँ, भीड़ ही में रो पडूँ, आज़ाद इतना मन नहीं

बेसबब ही नाच लूँ, अब बचे वो दिन नहीं…

अब कभी चोटियों में रिब बने डलती नहीं…

अब कभी मैदान में ही शाम कभी ये ढलती नहीं…

अब कहाँ है रौशनी आँखों में किसी ख्वाब की,

अब कभी वो बावरी सी आग ही जलती नहीं…

जुस्तजू है प्यार हो, स्कूल की दीवार हो….

मैं खड़ी इस तरफ, वो छुपा उस पार हो…

नादानियाँ हो बेधड़क, वो तितलियाँ हजार हो…

एक झलक मिले महज उसी का इंतज़ार हो…

पर, चाहतों में गर्द है, जिंदगी भी सर्द है…

वो दिन थे दिल में प्यार था, अब दिलो में दर्द है…

बचपन बड़ा ही पाक था, कुछ पल को ही वो साथ था…

कुछ रात लोरी वो सुनाकर, खवाब परियों के दिखाकर…

गुदगुदा के दो घडी, मुझे सुलाके दो घडी…

सौंपके गया मुझे यूँ वक़्त के वो हाथ में…

छोड़के गया मुझे बेचैनियों के साथ में…

काली अँधेरी रात में, बिन कहे ही चल दिया…

हुई सुबह नहीं मिला वो…




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