Wo Pagal Mera Intzaar Karti Hai by Kanha Kamboj

Wo Pagal Mera Intzaar Karti Hai by Kanha Kamboj


Wo Pagal Mera Intzaar Karti Hai by Kanha Kamboj

 

है वही एक ज़िम्मेदार बस इस हालत का…

चलो अब तो कर रहे है कारोबार इस हालत का…

गले लगकर कहा उसने कभी,

देखना तुम्हे रहेगा मलाल इस हालत का…

हालात देख बदली थी हालत अपनी,

अब तो हो गया हूँ तलबगार इस हालत का…

एक पागल बनना चाहता है मुझ पागल सा,

वो पागल भी कर रहा है इंतज़ार इस हालत का…

बड़े शौक से सुनाते हो किस्सा--बर्बादी,

तुम्हारे सर चढ़ गया है खुमार इस हालत का…

 

जानता हूँ यही है हकीकत पर…

भरोसा करना मुश्किल है हकीकत पर…

चल ना रख हमसे कोई वास्ता यार,

तू सुन तो ले एक बार हकीकत पर

हर हकीकत की हकीकत यही है,

झूठ भारी रहा है हर हकीकत पर…

और किसी और की कहानी से नहीं होती मुकम्मल गज़लें,

मियां यहाँ लिखना पड़ता है अपनी हकीकत पर…

जुबां तो करती है लफ़्ज़ों से फरेब साहब,

आंखे बयाँ कर देती है हकीकत पर…

और सब तो झूठ लिख रहे है कान्हा,

तुमने ये क्या लिख डाला हकीकत पर…




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