Mere Jism Ka Tukda Meri Bhook Mitata Hai By Lovely Sharma
औरत जब तक चरित्रहीन नहीं होती..
जब तक की कोई पुरुष चरित्रहीन ना हो...
मेरी ज़िन्दगी के किस्से हर रात बदलते है..
प्यार की औकात नहीं हमारी, हम देह का व्यापर करते है...
कोई खरीद कर, तो कोई अगवा होकर आती है..
मेरी हर सहेली यहाँ धंधेवाली कहलाती है...
बदनाम गलियां है मेरी, और में भी बदनाम हूँ
सच मानो तो यारा, में भी एक इंसान हूँ...
इज़्ज़त की दुहाई दूँ, इतना ऊँचा नाम नहीं है मेरा..
मेरी किस्मत की बात है, काम यही है मेरा...
मेरी जिस्म का टुकड़ा मेरी भूख मिटाता है..
यहाँ बैठा हर इंसान, मुझे वैश्या बुलाता है...
मेरा पल्लू जो ज़रा सा सरका,
लोगो ने मेरे दामन पर दाग लगा दिया...
मैं भी एक इंसान थी जनाब, मैं भी एक औरत थी जनाब..
मज़बूरी ने मुझे वैश्या बना दिया...
अपने आंसुओ का लगाकर काजल मैं, सोलह श्रृंगार करती हूँ..
सिर्फ सुहागरात नहीं, मैं हर रात जूनून दिखाती हूँ...
जिस्म के बाजार में, बोली मेरी रातो की लगती है..
घंटे- घंटे के हिसाब में, इज़्ज़त मेरी बिकती है...
रोज़ नया परवाना मुझे बिस्तर पर बिखेरता है..
आंसुओ से जलाती हूँ
जिन्दीओ को, उन्हें एक फूँक की हवा देता है...
कतरा- कतरा खून बहाकर मैं वैश्या बन जाती हूँ..
गिरवी रखकर खुद को मैं वैश्या बन जाती हूँ...
घर नहीं है मेरा, टांगो के बीच में रहती हूँ..
नाम नहीं है मेरा, मैं खुद को रंडी भी कहती हूँ...
मेरी चींखे, मेरी आंहे, मेरी करवटो की कहानियां, दोस्तों की महफिले सजाती है..
सन्नाटे में दफ़न करके खुद की पहचान को, मैं नयी सुबह वैश्या बन जाती हूँ..
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