Gharwale Tanne Jamaai Ni Bulavenge by Chetna Balhara

Gharwale Tanne Jamaai Ni Bulavenge by Chetna Balhara


Gharwale Tanne Jamaai Ni Bulavenge by Chetna Balhara

 

अपनों से आज कोई रूठकर आया है…

देखो इस महफ़िल को, शायद आज फिर कोई आशिक टूटकर आया है…

 

घर में बुझी जिसने तू पसंद करे है,

सांवला है के…

नू बोल्या तू मुझे मेरे रंग ते छोड़ देगी,

मका छोरे बावला है के…

 

सुथरा तो मैं घना ही हूँ, इब कमाई तेरे पे उड़ावेंगे…

मका छोरे बावला है तू, मेरे घर के जमाई तन्ने जमाई नी बुलावेंगे…

 

गलत लोगा ते हम नू ही मुँह मोड़ लिया करे…

अर जो तम कह दो है ना कि कुछ सिखाया नी थारे माँ बाबू ने,

मका इज्जत करनी सिखाई है, वरना इतनी बात पे तो मुँह तोड़ लिया करे…

 

जो तू रोज रोज छात पे चिड़ियाँ देखन जावे है,

उसने उड़वा के मानेगा के…

प्यार तन्ने करना नी मुँह और बना ले है,

बता इस मुँह ने तुड़वा के मानेगा के…

 

अनजान रास्तों पर घुमाया जा रहा है….

हमे फिर से बातों में फसाया जा रहा है…

और आगे बढ़ गए है हम पर भूल नहीं पा रहे है,

कुछ पुरानी बातों से आज भी भटकाया जा रहा है…

 

दूर रहकर भी पास है, दूर रहकर भी कहीं ग़ुम…

काश कुछ हो ऐसा कि मैं देखूं तुम्हें और मुझमे खो जाओ तुम…

करूँ मैं तुमपर कोई ऐसा जादू टोना,

नाम पुकारूँ तुम्हारा और मेरे हो जाओ तुम…

 

प्यार हर बार जताना जरुरी है क्या…

मान भी जाओ मनाना जरुरी है क्या…

हाँ तुमसे नहीं मगर तुमसे है,

सुनो दरमियान हमारे जमाना जरुरी है क्या…

मैंने कहाँ कभी कुछ माँगा है तुमसे,

तुम्हारा बात बात पे आजमाना जरुरी है क्या…

बेचैनी सी है रुको जरा पास मेरे,

किस जल्दबाजी में हो जाना जरुरी है क्या…

 

दिया तुम्हारा जखम अब पुराना हो गया…

हाँ कोई अपना हमसे रवाना हो गया…

और आईने में देख तो लूँ कहने पे तुम्हारे खुदको,

पर सच तो ये है अब खुद से मिले जमाना हो गया…




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