Pehle Jaisi Baat By RJ Vashishth

Pehle Jaisi Baat By RJ Vashishth

Pehle Jaisi Baat By RJ Vashishth

 

अब हमारे बीच वो पहले जैसी बात नहीं होती..

सारी रात जागते रहते पर बात हो वैसी रात नहीं होती..

अब हमारे बीच वो पहले जैसी बात नहीं होती..

पहले इंतज़ार रहता था 11 बजने का..

झूटी मुठी उबासियाँ लेकर कमरे में जाने का..

Lights Off करके धीमी आवाज़ में बात करने का..

और Good Night कहने के बाद भी एक और घंटा बात करने का..

पहले इंतज़ार रहता था..

पर अब Online रहने के बावजूद भी दिल से कुछ Offline से हो चुके है..

एक दूसरे का हक़ पाते- पाते एक दूसरे को ही खो चुके है..

ना बोल के भी सब कुछ बोलते अल्फाज़ो का बोझ कुछ यूँ ढो चुके है..

की रिश्ते की झुकी कमर को संभालने का अब जज़्बा ही खो चुके है..

खलती है बातें दिल में होने के बावजूद सन्नाटे का होना खलता है..

बहुत कुछ कहने को है पर Hmm, और?, बस कुछ नहीं, जैसी बातो का होना खलता है..

माना की ढलता है हर रिश्ते का सूरज, शाम आने पे ढलता है..

पर वक़्त गुज़रते- गुज़रते सूरज के साथ रिश्ता भी क्यों पिघलता है..

अब तो डरता है, ऐसा जब बारी- बारी होता है तो दिल डरता है..

सब कुछ होके भी कुछ ना होने का दावा करता है..

डरता है ये दिल, डरता है...

जानता हूँ मैं ये वक़्त भी गुज़र जाएगा..

बिलकुल वैसे जैसे वो वक़्त भी गुज़र गया..

वैसे ही ये वक़्त गुज़र जायेगा जानता हूँ मैं..

बस इतना है कि फिर से उसी इंसान के लिए धड़कने कि हिम्मत तो नहीं लेके जायेगा ना..

उनकी आँखों में खुद को देखने कि ख़्वाहिश तो नहीं लेके जायेगा ना..

जिस छुअन से अपनापन था, उसी छुअन से अब परायेपन का एहसास तो नहीं आएगा ना..

कांच जैसे इस दिल पे आई दरार कि याद तक से रिश्ता फिर से तो नहीं बिखर जायेगा ना..

बस इतना है अब हमारे बीच वो पहले जैसी बात नहीं होती..

सारी रात जागते- जागते बात हो वैसी बात नहीं होती..

हमारे बीच अब वो पहले जैसी बात नहीं होती...

 



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