Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake by Kanha Kamboj

Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake by Kanha Kamboj


Galti Ki Tujhe Sir Par Bithake by Kanha Kamboj

 

बात मुझे मत बता क्या बात रही है

रह साथ उसके, साथ जिसके रात रही है

जरा सी भी ना हिचकिचाई होते हुए बेआबरू,

बता और तेरे जिस्म से कितनो की मुलाकात रही है

और वस्ल के किस्से बस एक खवाब बनकर रह गए,

मेरे हाथ में तेरी यादों की हवालात रही है

और वक़्त के चलते हो जायेगा सब ठीक,

अंत भला क्या होगा बुरी जिसकी इतनी शुरुआत रही है

और बदन के निशां बताये गए जख्म पुराने,

मोहतरमा कहाँ इतनी कमजोर मेरी याददाश्त रही है

गैर के साथ भीगती रही रातभर,

बड़ी बेबस वो बरसात रही है

और कुछ अश्क बाकि रह गया तेरा मुझमे,

वरना कब किसी की कही इतनी बर्दाश्त रही है

और गलती मेरी ये रही कि तुझे सर पर बैठा लिया,

वरना कदमो लायक भी कहाँ तेरी औकात रही है

और तेरे इश्क़ में कर लिए खुद को बदनाम इतना,

जरा पूछ दुनिया से कैसी कान्हा की हयात रही है

 

सुना है तेरी चाहत में मर गए लोग

यानि बहुत कुछ बड़ा कर गए लोग

सोचा कि देखे तुझे और देखकर सोचा ये,

तुझे सोचते हुए क्या क्या कर गए लोग

और तेरी शोहबत में आने के बाद सुना है,

नहीं दोबारा फिर मुड़कर घर गए लोग

और तुझसे मोहब्बत में कुछ भी नहीं हासिल,

तेरे लिए हद से गुजर गए लोग

और तुम छोड़ दो उस अप्सरा की बातें कान्हा,

अप्सरा नहीं होती कहकर गए लोग

 

मेरे लहजे से दब गयी वो बात

तेरे हक़ में कही थी मैंने जो बात

तेरी एक नहीं से खामोश हो गया मैं,

कहने को तो मुझपर थी सौ बात

और तू सोच की बस तुझसे कही है,

मैंने किसी से नहीं कही जो बात

और तू किसी से कर मुझे ऐतराज़ नहीं,

ताल्लुक गर मुझसे रखती हो वो बात

 



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