Tu Mujhe Apne Khel Mein Phansa Gya by Chetna Balhara
वे मुद्दे जो उनके खिलाफ उठे थे…
मुज़रिम हम थे ज़नाब वो बेखाम फंसे थे…
उन्होंने ढूंढा हमे हर तरफ,
पर काश दिल में देखा होता, हम वही छिपे थे…
सुना है तेरी खुशियों भरी ज़िन्दगी में कोई और आ गया है…
नाम लिख वफ़ा तेरी लकीर में हमे गैर बना गया है…
प्यादा बना शतरंज का तुझे मेरी ज़िन्दगी से निकाल गया है…
खुश है तू भी संग उसके बस हमे रुला गया है…
क्या कहूं बस लफ्ज़ नहीं, जब तू ही बदल सा गया है…
तेरा किसी और का हो जाना बस घायल कर गया है…
तकदीर नहीं बदल सकते अपनी जब तुझे ही ख्याल किसी और का आ गया है…
उजड़ सा गया है सब बता ना यार कैसा माहोल बना गया है…
वो फूल तूने खिलाया था ना कभी, वो हमेशा के लिए मुरझा सा गया है…
जिसे मैं जानती थी कभी वही आज अजनबी बन मेरे सामने खड़ा है,
और जिसे मैं जानती ना थी कभी वही आज ढाल बनकर आ गया है…
अच्छा गुनाह ही बता दो मेरा जिसकी वजह से ये दिल किसी और पे आ गया है…
तू तो गुरूर था ना मेरा तभी तूने कुछ ना कहा मेरे जाने पे,
बता ना यार ये कैसे खेल में फंसा गया है…
तो स्वागत है आपका इस प्यार की जेल में,
यहाँ लाड भी मिलेगा वफाई भी मिलेगी…
वफाई मिलने के बाद ये ना सोचना कि सब मिल गया,
आगे आगे चलो बेवफाई भी मिलेगी…
मुजरिम तुम्हारे सामने होगा, हित में तुम्हारे न्याय ना होगा,
जितने शरीफ तुम हो उतनी चतुराई भी होगी…
यहाँ बेवफाई के खिलाफ सुनवाई ना होगी…
जितनी इज्जत प्यार में घटेगी उतनी तुमने कमाई ना होगी…
रोते रह जाओगे, पत्थर बन जाओगे, बातो में फिर ना किसी की आओगे,
जो चाहोगे अपनी कलम से लिखवाना वैसी लिखाई ना होगी…
चाहे जितने पुराने कैदी रह लो तुम प्यार के,
यहाँ एक बार आने के बाद रिहाई ना होगी…
ऐ जिंदगी क्यों तूने सारा दर्द मेरी ही लकीर में लिख डाला,
तुझे क्या गिला है मुझसे…
तेरे दिए हम अंदर ही अंदर चीखते है रातभर,
बता ना यार क्यों खफा है मुझसे…
तेरे ही रास्तों पे कदम रखे मैंने, तूने हर रास्तों पे कांटे बिछाये है,
तूने ही झूठे लोगो का घर मेरे मोहल्ले में बसवाया…
ख़ुशी के लम्हे तूने ही मेरी लकीर से हटाए है,
ऐसी भी क्या खता की मैंने जिंदगी जो तू इतनी खफा है मुझसे…
ऐसा ना हो कल तू ख़ुशी देने आये मुझे और मेरी सांसे रूठ जाये मुझसे…
बता ना यार क्यों खफा है मुझसे…
चाहूं तो कर सकती हूँ डिलीट…
तेरे साथ बिताये लम्हों को तेरे साथ खिंचाई फोटो को…
तेरे दिए उन जख्मों को, नम हुई उन आँखों को…
चाहूं तो कर सकती हूँ डिलीट…
तेरे दी हुई मुस्कराहट को, तेरे दी हुई आहट को…
तेरे झूठे वादों को, तेरी सारी यादों को…
चाहूं तो कर सकती हूँ डिलीट…
पर करना नहीं चाहती…
क्योंकि वो कहते है ना कुछ जख्म भुलाये नहीं जाते…
और आये दिन दिल लगाए नहीं जाते…
और मिटती अगर ये यादें तो कब का मिटा देते…
यूँ जबरजस्ती लोग भुलाये नहीं जाते…
अब किसी और से लगाऊं दिल वो ऐसी सलाह दे गया…
जीते जी वो हमे कज़ा दे गया…
गुनाह मेरा सिर्फ उससे प्यार करने का था,
शायद इसी बात की वो सजा दे गया…
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