Kaash Tum Ajnabi Rehte To Achha Hota By Amit Nainawat

Kaash Tum Ajnabi Rehte To Achha Hota By Amit Nainawat


Kaash Tum Ajnabi Rehte To Achha Hota By Amit Nainawat

 

मैं ख्वाबो में खोया था तेरे,

तू भी मेरे सपनो में खोई थी क्या?

और ये जो मोहब्बत- मोहब्बत करती फिरती हो,

तुम्हे सच में मोहब्बत हुई थी क्या?

 

इस खत के ज़रिए, तुम्हें एक फरमान कहते है..

हाँ हम तुम्हें अब बेईमान कहते है...

यूँ तो कोई जान ले ना सका हमारी,

और जो जान लेकर गया, हम उसी को जान कहते है।...

 

कि ज़िन्दगी अपनी खुली किताब कर दी थी..

हम से खता ये हुई, कि तुमसे मोहब्बत बेहिसाब कर ली थी।

 

कि वक़्त पर साबित कर दिया करो, बाद में कोई ऐतबार नहीं करता..

जो दिल से खूबसूरत ना हो, उसे कोई प्यार नहीं करता...

ये मोहब्बत का काफिला है, यहाँ हाथ थामे चला करो,

जो हाथ छूट जाये, तो कोई इंतज़ार नहीं करता।

 

कविता- काश

काश तुम कुछ ना कहते तो अच्छा होता..

हम जज़्बातो में ना बहते तो अच्छा होता..

काश ये दिल तुम पर आया ही ना होता..

काश तुम अजनबी रहते तो अच्छा होता...

 

काश हम एक दूजे को पसंद ही ना आये होते

वो साथ रहने के सपने ना सजाये होते

ना मैं शेर पढता, तुम्हारी खूबसूरती पर,

और ना ही तेरे नाम के हर्फ़ मैंने दिल में बसाये होते।...

तुम में तुम, हम में हम ही रहते तो अच्छा होता

काश तुम्हारे दिल में नबी रहते तो अच्छा होता

जाने क्यों खुद से ज्यादा जान लिया तुमको,

काश तुम अजनबी रहते तो अच्छा होता।...

 

काश वो रेशमी ज़ुल्फ़े तुम्हारी हवा में ना उडी होती..

काश उस दिन हवा ही ना चली होती..

काश तुमने वो मेरे पहले Call ना उठाया होता..

काश उस रोज़ मेरे फ़ोन में नेटवर्क ही ना आया होता...

तुम हमसे दूर ही रहते तो अच्छा होता..

तुम बेक़सूर ही रहते तो अच्छा होता..

याद किया है इस कदर की अब भुलाये नहीं भूलते हो..

काश तुम अजनबी रहते तो अच्छा होता...

 

काश तुम मेरे घर ना आई होती ..

काश मैंने तुम्हे चाय ना पिलाई होती

लोग मिलाते है शक्कर उसमे,

काश मैंने उसमे मोहब्बत ना मिलाई होती...

उस रोज़ तुम अपने घर में रहते तो अच्छा होता..

मेरी बचपन की तस्वीर देख, मुझे चीकू ना कहते तो अच्छा होता..

तुमसे अलग तो हम भी खुद को पहचान नहीं पा रहे है..

काश तुम अजनबी रहते तो अच्छा होता...

 

काश तुमने वो सड़क किनारे मेरा हाथ ना पकड़ा होता..

काश तुमने हमे अपनी झूठी मोहब्बत में ना जकड़ा होता..

अगर तमने हमे पहले ही सब सच्चाई बता दी होती..

ना ये आँखे नम होती, ना ये रोने धोने का लफड़ा होता..

उस सड़क पर तुम अकेले ही चलते तो अच्छा होता...

इन नन्ही आँखों में सपने ना पलते तो अच्छा होता

गुस्सा आता है खुद पर, कि क्यों तमसे मुलाकात की..

काश तुम अजनबी रहते तो अच्छा होता..

 

कि उस पुराने पीपल की लेने छाओ जा रहा हूँ..

थोड़ा जल्दी में हूँ, नंगे पाव जा रहा हूँ..

और ये मोटर, गाड़ी, बंगला सब तुम रख लो,

माँ अकेली है, मैं गांव जा रहा हूँ..




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