Wo Ladki Bahut Jhuth Bolti Hai by Kanha Kamboj

Wo Ladki Bahut Jhuth Bolti Hai by Kanha Kamboj

Wo Ladki Bahut Jhuth Bolti Hai by Kanha Kamboj

मेरे गमो में मेरी हिस्सेदार नहीं लगती…

ये लड़की मेरी कहानी का किरदार नहीं लगती…

उसकी फ़िक्र करूँ तो हुकूमत बताती है,

यार ये लड़की मुझे समझदार नहीं लगती…

और है जानना क्या बताती है अपने घर मुझे,

मगर मेरे घर से उसके घर की दीवार नहीं लगती…,

और मैं हकीकत जानता हूँ फिर भी छुपाती है बातें,

मुँह पर झूठ बोलती है यार ईमानदार नहीं लगती…

और मुझे पकड़ लेती है खटिया उससे हिज्र की बात सुनकर,

यार वो मुझसे जुदा होकर भी बीमार नहीं लगती…

और मुझे झुकना पड़ता है उसकी गलती के आगे,

गुनाह इतनी चालाकी से करती है गुनेहगार नहीं लगती…

और बेफिजूल ही पढ़ रहे हो उसके हक़ में कलाम कान्हा,

तुम्हारी इन दुआओ की वो ज़रा भी हक़दार नहीं लगती…


डरता था स्याह रातों से मैं,

पर उस चाँद से इश्क़ का अब चढ़ खुमार रहा था…

एक रोज लिपटकर सोइ थी वो गैर से,

उस सर्द रात मुझे बहोत तेज़ बुखार रहा था…

और मालूम ना थी बेवफाई खुद के मेहबूब की,

और मैं शहर के हर घर में बाँट अखबार रहा था…

 



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