Wo Kamra Ab Band Pada Hoga by Goonj Chand
वो कमरा अब बंद पड़ा होगा…
वो कमरा जो सिर्फ मेरे लिए खुलवाया गया था…
वो कमरा जो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया था…
वो कमरा जो धूल और गंद से भरा हुआ था…
वो कमरा जहा में रहना तक नहीं चाहती थी…
वो कमरा जहा से मुझे डौगी की स्मैल आती थी…
वो कमरा फाइनली मैंने अपने हाथो से साफ किया था…
वो कमरा जिसके दरवाज़े तक पे मैंने लगा दिया था…
“जूते चप्पल बहार उतारे”
वो कमरा जिसे मैंने कमरे से घर बनाया था…
और उसके साफ़ होने के बाद तुम जैसे पागलो ने उसे हतियाया था…
वो कमरा जहा हमारी आवाज़े तो गूंजा करती थी…
वो कमरा जहा हमे एक दूसरे की साँसे तक सुनाई दिया करती थी…
वो कमरा जहा रोज किसी न किसी बात पर डिस्कशन होता था…
वो कमरा जहा कोई रोता तो कोई हस्ता था…
वो कमरा जहा हम डेली पार्टी किया करते थे…
वो कमरा जहा सब पिने के बाद कही भी सो जया करते थे…
वो कमरा जहा हम सब एक साथ खाना खाया करते थे…
और वही कमरा जहा हम एक दूसरे के सर में तेल लगाया करते थे…
वो कमरा जहा हम रोज दिया जलाया करते थे…
वो कमरा जहा हम सबकी नकल उड़ाया करते थे…
वो कमरा जहा अपने पास्ट को याद करके कोई रो दिया करता था…
तो वही कमरा जहा दूसरा उसे गले लगाकर कंसोल किया करता था…
वो कमरा जहा हम अपनी सारी फ़्रस्टेशन निकाल दिया करते थे…
और वही कमरा जहा हम बातो बातो में पूरी रात निकाल दिया करते थे…
वो कमरा जिसे मैंने अपनी यादो से सजाया था…
और उसे छोड़ने का दुःख भी मेरे ही हिस्से आया था…
वो कमरा आज फिर बंद पड़ा होगा…
और फिर उसी गन्दगी और गंद से भरा होगा…
पर होगा इसी उम्मीद में के फिर कोई आएगा…
उसे सजायेगा और उसे घर बनाएगा…
पर क्या कोई हमारी तरह उसे समझ पायेगा…
वो कमरा अब बंद पड़ा होगा…
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