Kya Wo Ishq Tha by Karan Gautam
चाँद मे दाग होते है ये हमे तब पता चला,
जब उस चाँद को किसी और के साथ रात गुजारते देखा…
बता मत उसे जता मत उसे इजहार मत कर बस प्यार कर…
इश्क सच्चा है तेरा वो तुझे खुद मिल जायेगा,
सब्र कर थोडा इंतजार कर…
मोहब्बत मे हमने क्या खुब सजा पायी है…
यारी फूलो से नही कांटो से निभाई है…
और गले से उतारा है हर बार उस जाम को,
जिसकी हर इक बूद इन आखो से छलक के होटो तक आई है…
बेवफा तू ही नही मै भी हो गया हू,
क्युकि अब तेरी बातो से नही खुद के जज्बातो से प्यार करता हू…
फर्क इतना है,कि तुने चाहा किसी ओर को,
मै जुगनु की तरह इन रातो से प्यार करता हू…
स्याहि का इक इक कतरा,
शायरी बनकर कागजो पर बिखर जाता है…
माना लिखावट खराब है मेरी, पर कुछ लोग केहते है,
आपका लिखा दिल मे उतर जाता है…
नही था इश्क मुझसे तो बता देता पर ये किस अकेलेपन के मंजर में धकेल गया…
मेरी आँखे थक गयी है, इंतजार करते करते और तू है,
कि जिस्म के साथ साथ जज्बातो के साथ भी खेल गया…
अब मंजिल मै नही तेरी तो रास्ता बदल और मुड जा कही…
आजादी का ख्वाव तेरा पूरा किया बना के ये आसमा,
चल फैला ये पंख और उड जा कही…
जान जान केहते थे जमाने भर मे जिसको,
आज उसी की बदोलत जान पर बन आई है…
और जान किसकी जायेगी ये तो वक्त ही बतायेगा,
क्युकि वो भी यही केहती है कि इश्क मे सजा उसने भी बराबर पायी है…
यही सोच कर चले थे कि रास्ते जाते कही नही पर ले जाते है जरूर है मंजिलो तक…
अब हालात से मजबूर बीच भवर मे फसे है कि कोई पहुचा दे साहिलो तक…
आ जाते हो जिंदगी मे बार बार घूमने बगीचा समझा है क्या??
तोड देते हो दिल इस कदर बार बार शीशा समझा है क्या??
तो क्या वो इश्क था…
क्युकि कभी जो नजरे मेरा रास्ता देखा करती थी…
मुझे ही देखकर जीती मरती थी…
आज वही नजरे किसी ओर की नजरो मे देखकर,
प्यार का इजहार कर रही है क्या वो इश्क था…
क्योकि जो जिस्म मेरी बाहो मे आने को तरसता था…
मेरे जरा से डाट देने पर उसकी आखो से बादल सा बरसता था…
आज वही जिस्म किसी ओर की बांहो में है, ओर आज भी मै उसे भूला नही…
क्योकि आज भी वो चेहरा मेरी निगाहो मे है, तो क्या वो इश्क था…
क्योकि कभी जिन पलको का सवेरा तब तक नही होता था…
जब तक वो हमारा दीदार ना करती थी…
कही उसकी जरा जरा सी नादानियो से तंग आकर मै उसे छोड ना दू,
इस बात को लेकर हर पल डरती थी…
आज उसकी हर सुबह की वजह,
सूरज की कुछ किरणे किसी ओर शक्स का चेहरा बन गया है…
तो क्या वो इश्क था…
क्योकि कभी तुम मुझ मे अपनी बाहे डाल कर,
मेरी बाइक की पिछली सीट पर बैठा करती थी…
मेरे कंधे पर तुम्हारा सर होता था,
ओर तेज हवाये तुम्हारी जुल्फो को छूकर गुजरती थी…
पर ना जाने क्यो,हवाओ की वजाये तुमने अपना रुख मोड लिया…
तो क्या वो इश्क था…
तेरे आँन लाइन होने पर भी,
तेरे जबाब ना देने पर,ये समझ मै पल पल मर रहा था…
कही तू किसी ओर की तो नही होने जा रही थी,
इस बात को लेकर हर पल डर रहा था…
आखे आँसू बहा रही थी ओर मै दिल को बेहलाने का काम कर रहा था…
ये इश्क ही तो था…
अब दिल मेहफिलो से डरने लग गया है,
आखे किसी ओर से मिलने से पेहले पीछे हटती है…
खुदा तुझे भी एक दिन एसा दिखाये कि तुझे भी तो पता चले,
कि भिगे हुए तकिये पर रात कैसे कटती है?
कैसे छुप छुप कर रोया जाता है…
कैसे पलको के साथ साथ हाथो को भी भिगोया जाता है…
तुझसे इतना प्यार करते हुए भी,
तुझे तडपाने के बारे सोचकर आँखे भर तो आती है…
लेकिन मै भी क्या करू, जहाँ इतनी मोहब्बत होती है,
वहाँ हद से ज्यादा नफरत हो ही जाती है…
अनसुनी इक दास्तां सुनाऊ आज तुमको…
क्या है ये इश्क ये बताऊ आज तुमको…
उसको तो बताने में नाकाम रहा शायद,
पर अलफाजो से अपनी मोहब्बत जताऊ आज तुमको…
क्यु हर दिल का तडफना जरूरी सा हो जाता है…
क्यु इस इश्क को पाना फितूरी सा हो जाता है…
और मैने देखा है वो इंसान को जो पत्थर दिल केहता था,
खुद को आज भरी मेहफिल मे हस्ते हस्ते रो जाता है…
और बैठे बैठे खो जाता है…
रातो मे ली गयी हर सिसकीयो की आवाज आज सुनाऊ तुमको…
क्या है ये इश्क बताऊ आज तुमको…
मेरा प्यार मेरा इश्क मेरी मोहब्बत मुझे मिल जाये…
मुझे मिल जाये मुझे मिल जाये हर शक्स केह रहा है….
पर यहा तो फैरियादे भी बद्दुआ बन के लौट जाती है….
लगता है मेरा खुदा ही बेहरा है…
मोहब्बत के सारे पेहलु गिनाऊ आज तुमको…
क्या है ये इश्क ये बताऊ आज तुमको…
कोई अपना प्यार हासिल करने के लिये,
अगले जनम तक रुक जायेगा…
तो किसी का प्यार दबा रह गया जमाने के उसूलो के नीचे…
संभल कर,संभल कर चलना इश्क मे हर कदम,
किसी ने कांटे बिछा रखे है फूलो के नीचे…
आशिको को रोते हुए, कंधो का तो कभी गेट का सहारा लेते देखा है…
और जो साले बडे शरीफ बताते थे खुद को कभी,
आज शराब मे धुत सिगरेट का सहारा लेते देखा है…
पूछना था मुझे पूछना था मुझे उसकी हर साँसो की बेवफा सी रवानी से…
किसी ओर की बदोलत दी गयी उसके जिस्म पर हर निशानी से…
आखिर मेरा ही नाम क्यु मिटाया, अपनी कहानी से…
पर किसी ने क्या खुब कहा है ये जिस्म की आग है जनाब,
ये नही बुझने वाली किसी कुएँ के पानी से…
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