Kabr Se Bheji Sada By Nidhi Narwal

Kabr Se Bheji Sada By Nidhi Narwal


Kabr Se Bheji Sada By Nidhi Narwal

 

सुनो, क्या तुम अब मुझे सुन सकती हो,

मुझे मालूम है कि मुश्किल है, बहुत मुश्किल है…

लेकिन मेरे बिना दिल लगा लो ना…

और मेरी एक हसरत है पूरी करोगी,

कि मेरी कब्र पर आकर कभी तो मुस्कुरा लो ना…

मैं यहाँ ठीक हूँ, बिलकुल ठीक हूँ, बस तुम्हें बता नहीं सकता…

और मैंने पूछे है खुदा से, खुदा के मंसूबे तुम्हारे लिए…

वो बोला कि वो मशर्रत अब देर तलक तुमसे छुपा नहीं सकता…

यकीन मानो, हम साथ बैठकर लिख रहे है एक नई सुबह तुम्हारे लिए…

मैं अपनी जान इस जहान में लेकर आया ही नहीं हूँ…

अरे तुम भूल तो नहीं गई हो तुम जान हो मेरी…

तो ख्याल रखो तुम मेरी जान का, तुम मिटटी के इस तरफ भी पहचान हो मेरी…

और मेरी एक तमन्ना है,

कि मेरी कब्र पे रखा फूल अपनी ज़ुल्फ़ों में लगाओ, संवर लो तुम…

हाँ तुम्हें अब भी हक़ है, उतना ही हक़ है,

कि इन फूलों का रंग अपनी सफ़ेद साडी में भर लो तुम…

ये सुर्ख लाली आँखों की उतारों, जो आंखे रो रोकर लाल पड़ गई है,

ये सुर्ख लाली आँखों की उतारों, फिर रुखसार पर सजाओ इसे…

ये बिंदी तन्हा तन्हा है, अपने माथे पर जरा बैठाओ इसे…

और कली के जैसे लब तुम्हारे बंद पड़े है,

वक़्त है अब खिलने का ये बताओ इसे…

बेक़सूर दिल को आखिर कब तक बेकस रखोगी यूँ,

किसी और से मिलना भी सिखाओ इसे…

मैं तेरे पायल की झंकार सुनना चाहता हूँ…

मेरे सीने पे टूटी तेरी चूड़ियां चीखती बहुत है, बहुत हो गया बस,

अब मैं तेरे कंगन की खंखार सुनना चाहता हूँ…

अब ठीक है ना कोई बात नहीं,

ज़िन्दगी आखिर हम सब की मेहमान ही तो होती है…

मगर वो जो इतनी नफरतों के बाद भी, इतनी खामियों के साथ भी,

इतनी गलतियों के बाद भी, हमे कबूल करती है,

देखो वो मौत भी रहमान ही तो होती है…

सुनो, अगर तुम अब भी महसूस करती हो मुझे तो सुनो,

अपनी मेहमान से इस कदर रूठी मत रहो…

अरे जिंदगी तरस गई है उससे बात करो…

खुदा के वास्ते तुम मौत से पहले मत मरो…

अच्छा ऐसा करो, जहाँ मैं दफ़न हूँ ना वहां बगीचा बना लो,

फिर मेरी कब्र में खुश्बूं होगी पर फूलों को टूटना नहीं पड़ेगा…

तू आती रहा करना, तुझे भी रंगो से छूटना नहीं पड़ेगा…

तू खोलकर देख कभी घर अपना भी,

तुझे सुकून यूँ रो रोकर मेरी कब्र से लूटना नहीं पड़ेगा…

तू नूर है, बेक़सूर है,

आसमान की तरफ देख तो एक दफा, तुझे पंखो से अपने रूठना नहीं पड़ेगा…

 

आखिर क्यों सादा, स्वेत लिबास मेरे मरने पर ही तुझे मिला

तू मरती तो अपनी खुद की अर्थी पे भी लाल जोड़े में होती

तू जलती जलती ख़ाक जोड़े में होती

तू मरती तो जोड़ा पहले राख होता, तू राख जोड़े में होती

अरे तू मरती तो अच्छा होता, मर ही जाती,

मगर तेरी रूह भी जिस्म से आज़ाद जोड़े में होती

क्योंकि ये जीते जागते बदन पे कफ़न लपेटकर घूमने का तुक मुझे समझ नहीं आता

अरे तू जिन्दा है तो जी, इससे ज्यादा क्या कहूं मैं, मुझे समझ में नहीं आता

तू जिन्दा है तो जी




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