Bas Ab Bahut Hua By RJ Vashishth

Bas Ab Bahut Hua By RJ Vashishth


Bas Ab Bahut Hua By RJ Vashishth

 

बस अब बहुत हुआ...

नहीं लिखनी कोई कविता या दोहा..

बस अब बहुत हुआ..

नहीं कहने वो कहानी वो किस्से..

नहीं बांटने काली रातो के अनछुए हिस्से..

नहीं दिखानी वो खारी सी नज़र..

और नहीं जाना फिर से कड़वी यादो के शहर..

नहीं खिलाने वो झड़े हुए पत्ते..

और नहीं तैराने तूफानी समंदर में पोपले फट्टे..

ऐसा होगा तो कर लेंगे अकेले- अकेले बात..

क्यूंकि नहीं करनी फिर से ज़ेहमत ताकि काटनी ना पड़े काली रात..

नहीं सुनने वो हीरो और रांझो के नग्मे..

और नहीं जलना मन कि कभी ना बुझती आग में..

नहीं चाहू मैं मीठ मधुर धानी..

मैं तो चाहू वो राग, वो धड़कन जिसको पाके मैं हो जाऊ फानी..

अगर ये मिलता है ना तो ठीक है..

वरना बस बहुत हुआ..

नहीं लिखनी कोई कविता या दोहा..

बस अब बहुत हुआ..




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