Uska Khayal Meri Puri Raat Le Gaya by Kanha Kamboj

Uska Khayal Meri Puri Raat Le Gaya by Kanha Kamboj


Uska Khayal Meri Puri Raat Le Gaya by Kanha Kamboj

 

मैं डरता डरता जुबां तक ये बात ले गया…

मैं सामने उसके अपने हालात ले गया…

और मोहब्बत बगैर पैसा कुछ भी पता नहीं चला,

जब कोई दूसरा घर उसके बारात ले गया…

और किसके ख्याल में होकर उसे मेरा ख्याल नहीं,

ये ख्याल मेरी पूरी रात ले गया…

और कैसे कर दे तेरी इज्जत बाजारी वो शख्स,

सरकने पर दुपट्टा तेरा जो आँखों पे अपनी हाथ ले गया…

और अब पेशा बना लिया है इस लहज़े को मैंने,

वो मेरे अंदर से एक हज़रात ले गया…

 

बात मुझे मत बता क्या बात रही है

रह साथ उसके, साथ जिसके रात रही है

जरा सी भी ना हिचकिचाई होते हुए बेआबरू,

बता और तेरे जिस्म से कितनो की मुलाकात रही है

और वस्ल के किस्से बस एक खवाब बनकर रह गए,

मेरे हाथ में तेरी यादों की हवालात रही है

और वक़्त के चलते हो जायेगा सब ठीक,

अंत भला क्या होगा बुरी जिसकी इतनी शुरुआत रही है

और बदन के निशां बताये गए जख्म पुराने,

मोहतरमा कहाँ इतनी कमजोर मेरी याददाश्त रही है

गैर के साथ भीगती रही रातभर,

बड़ी बेबस वो बरसात रही है

और कुछ अश्क बाकि रह गया तेरा मुझमे,

वरना कब किसी की कही इतनी बर्दाश्त रही है

और गलती मेरी ये रही कि तुझे सर पर बैठा लिया,

वरना कदमो लायक भी कहाँ तेरी औकात रही है

और तेरे इश्क़ में कर लिए खुद को बदनाम इतना,

जरा पूछ दुनिया से कैसी कान्हा की हयात रही है

 



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