Ladki Ho Tum Thoda Lihaaz Karo by Monika Singh
लड़की हो तुम, थोड़ा लिहाज़ करो…
लोग क्या कहेंगे, आसूं पोंछो, चेहरा साफ़ करो…
अगले घर जाना है तुम्हें, थोड़ा तो बर्दाश्त करो…
पर लड़की को हर वक़्त, सामान की तरह आंकने वालो,
तुम भी तो थोड़ी लाज करो…
क्या वो औरत है तो उसे जीने का अधिकार नहीं…
क्यों उसका यूँ बेबाक होना, जमाने तुझे स्वीकार नहीं…
सुख में सबके संग होती हूँ, दुःख में अकेली रह जाती हूँ….
दुनिया की नजरों में मैं, कुदरत का करिश्मा कहलाती हूँ…
परिचय किसी का मोहताज़ नहीं, खुद अपनी जुबानी कहती हूँ…
महाभारत रामायण ग्रंथो में, मैं अबला नारी बन रहती हूँ….
मैं वो भिक्षा हूँ पांडवो की, जो आपस में बाँट ली जाती हूँ…
पुरुष प्रधान इस दुनिया में, फिर जुए में हारी जाती हूँ…
मैं वो सीता हूँ राम की, जो रावण बन चुरा ली जाती हूँ…
फिर वो अग्नि परीक्षा भी मैं हूँ, जो माटी में समा दी जाती हूँ…
और आने वाले युगों के लिए, एक इतिहास बना दी जाती हूँ…
पर कौन हूँ मैं, ऐसी क्यों हूँ, खुद से ये प्रश्न दोहराती हूँ…
मैं वो आग हूँ सीने की, जो चूल्हो में झोंकी जाती हूँ…
आँखों में उड़ने का ख्वाब लिए, पिंजरे में डाली जाती हूँ…
उठना चाहूँ मैं फिर से, तो पैरों से रोंदी जाती हूँ…
लाख प्रतिभा हो मुझमे, पर हर कदम पे रोकी जाती हूँ…
मैं वो कली हूँ उपवन की, जो खिलते ही तोड़ ली जाती हूँ…
कभी मस्तक पे, कभी चरणों में, बस यूँ ही चढ़ा दी जाती हूँ…
खुद से ही जन्मी दुनिया में, मैं खुद को ही असुरक्षित पाती हूँ…
मैं वो ख़ामोशी हूँ आँगन की, जो रातों को चिल्लाती हूँ…
हवस भरी इस दुनिया में, हर रोज मैं बेची जाती हूँ…
फिर लक्ष्मी का वो रूप भी मैं हूँ, जो घर घर पूजी जाती हूँ…
पर कौन हूँ मैं, क्यों ऐसी हूँ, खुद से ये प्रश्न दोहराती हूँ…
क्यों आगाज नहीं मैं, क्यों आवाज नहीं मैं, क्यों सिर्फ मैं एक जरिया हूँ…
आते जाते लोगो का, क्यों मैं सिर्फ एक नजरिया हूँ…
क्यों शोर भरी इस दुनिया में, मन में सिमटी ख़ामोशी हूँ…
अपने इन हालातों की शायद मैं खुद भी दोषी हूँ…
पर एक बात कहूं मैं ऐ दुनिया, मैं भी तेरे ही जैसी हूँ…
मैं बेचैनी हूँ उस मन की जो चैन से जीना चाहती हूँ…
मैं ख्वाब हूँ खुद की आँखों का जो पूरा होना चाहती हूँ…
थक चुकी हूँ इन रूपों से अब खुद को पाना चाहती हूँ…
औरत हूँ मैं कोई सामान नहीं और औरत बन जीना चाहती हूँ…
खुद से पूछे प्रश्नो का एक मात्र ये उत्तर पाती हूँ…
अपने सारे खवाबों के संग मैं भी नभ में उड़ जाना चाहती हूँ…
नभ में उड़ जाना चाहती हूँ…
बबलू पांसे
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