Ek Shakhs Mera Hokar Bhi Mera Nahi Tha by Goonj Chand
वो हाथो मे तो था मेरे,
लकीरो मे नहीं था…
जिसे मे अपना समझती रही,
वो मेरे मुक़दर मे नहीं था…
और एक शख्स मेरा होकर भी मेरा नहीं था…
वो कंगन मे तो था मेरे,
पर चूड़े मे नहीं था…
वो कंगन मे तो था मेरे,
पर चूड़े मे नहीं था…
वो पायल मे तो था मेरी,
पर बिछिये मे नहीं था…
और एक शख्स मेरा होकर भी मेरा नहीं था…
वो गले के धागे मे था मेरे,
पर मंगलसूत्र मे नहीं था…
वो बिंदी मे तो था मेरी,
पर सिन्दूर मे नहीं था…
और एक शख्स मेरा होकर भी मेरा नहीं था…
सोमवार के व्रत मे था मेरे,
करवाचौथ मे नहीं था…
वो बॉयफ्रेंड था मेरा,
पतिपरवेश्वर नहीं था…
और एक शख्स मेरा होकर भी मेरा नहीं था…
वो हाथो मे तो था मेरे,
लकीरो मे नहीं था…
जिसे मे अपना समजती रही,
वो मेरे मुक़दर मे नहीं था…
और एक शख्स मेरा होकर भी मेरा नहीं था…
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