Uska Ab Mujhse Man Bhar Gya Hai By Kanha Kamboj

Uska Ab Mujhse Man Bhar Gya Hai By Kanha Kamboj

Uska Ab Mujhse Man Bhar Gya Hai By Kanha Kamboj

ये कैसा ख़्वाब में फन भर गया है…

शायद पुराना कोई जख्म भर गया है…

आपके आँसू क्यों नहीं रुक रहे,

क्या आँखों में आपकी गगन भर गया है…

मन भर कर चूमता था वो हमें कभी,

अब उसका मुझ से भी मन भर गया है…

इस तरह ढाए हैं उसने सितम मुझ पर,

ज़ख्म से दिल ही नहीं पूरा बदन भर गया है….


अपनी हकीकत में ये एक कहानी करनी पड़ी…

उसके जैसी ही मुझे अपनी जुबानी करनी पड़ी…

कर तो सकता था बातें इधर उधर की बहुत,

मगर कुछ लोगों में बातें हमें खानदानी करनी पड़ी…,

अपनी आँखों से देखा था मंजर बेवफाई का,

गैर से सुना तो फिजूल हैरानी करनी पड़ी…

पहले उससे मोहब्बत रूह तलक की मैंने,

फिर हरकतें मुझे अपने जिस्मानी करनी पड़ी…

एक छाप रह गई थी उसकी मेरे जिस्म पर,

अकेले में मिली तो वापिस निशानी करनी पड़ी…

हाथ में ताश की गड्डी ले कान्हा को जोकर समझती रही,

फिर पत्ते बदल हमें बेईमानी करनी पड़ी…

गैर से हंसकर बात कर खूब जलाया हमको,

हमें भी फिर किसी का हाथ थाम शैतानी करनी पड़ी…

 

पलकों ने बहुत समझायामगर ये आँख नहीं मानी…

दिन तो हंसकर गुज़ारा हमनेमगर ये रात नहीं मानी…

बिस्तर की सिलवट दे रही थी गवाही गैर की,

हमने करवट बदल लीमगर ये बात नहीं मानी…

 



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