Meri Pehali Mohabbat by Monika Singh
वो मोहब्बत है जो अक्सर कभी मुकम्मल नहीं होती….
और जिसे पाने की चाहत यहाँ हममे किसे नहीं होती….
ये छूट ही जाया करती है मुट्ठी में बंद उस रेत की तरह,
जिसे शायद बंदिशों में रहने की आदत नहीं होती…
अभी मैंने बस होश संभाला ही था…
निकालकर पांव बचपन से जवानी में डाला ही था….
कि अचानक एक मोड़ पे मुलाकात तुमसे हुई थी…
और तुम्हे देखते ही मैं पागल सी हो गयी थी…
दिन भर तुमसे बाते करना, रातों को तुमसे खयालो में मिलना…
मानो मेरी रोज की आदत सी हो गयी थी…
हाँ तुम्हे देखते ही मुझे तुमसे मोहब्बत हो गयी थी…
बिन तेरे करार मुझे कही आता नहीं था…
दिल से मेरे तेरा ख्याल भी जाता नहीं था…
घरवाले भी सब बेगाने से लगने लगे थे…
मेरी आँखों में ख्वाब जब तेरे सजने लगे थे….
हाँ अब हम छुप छुप कर अक्सर मिलने लगे थे…
संग तेरे वक़्त बिताना मुझे अच्छा लगता था…
लबों पे तेरे भी नाम तब मेरा ही सजता था…
पर खुलकर कभी तुम ये कह ना पाए…
जज्बात दिल के कभी बाहर ना पाए…
मैं भी ना समझ पायी वो जो तेरी आँखे कहती थी…
क्योंकि मैं तो तेरी जुबां से सुनना चाहती थी…
हाँ मैं तुझसे इजाहर-ऐ-मोहब्बत चाहती थी…
और फिर इस गलतफहमी में सब खो गया…
तू मुझसे फिर एक बार अजनबी हो गया…
कुछ दिन रोया दिल बहुत और फिर पहले सा हो गया…
मैं भी मूव ऑन कर गयी और तू भी जिंदगी में आगे बढ़ गया…
पर हाँ तू मेरी जिंदगी की किताब सा सबसे खूबसूरत हिस्सा बन गया….
याद आती है अब जब भी तेरी तो थोड़ा मुस्कुरा लेती हूँ…
अपने इस गम को फिर आँखों में छुपा लेती हूँ…
लौट पाना अब यहाँ से मुमकिन नहीं है…
क्योंकि अब ये मेरी जिंदगी सिर्फ मेरी नहीं है…
हाँ मुझे तुझसे अब वो पहले सी मोहब्बत नहीं है…
पर छुआ है जैसे तूने मुझे मेरी रूह तक ना कोई और छू पायेगा…
मेरी पहली मोहब्बत है तू और आखिरी तक मेरे साथ ही जाएगा…
मेरी जिंदगी में तेरी वो जगह कोई और ना ले पायेगा…
हां कोई और ना ले पायेगा…
कि कुछ इस तरह वो अपने प्यार का इजहार किया करते है…
कि करते है बात मुझसे जब भी, डांट दिया करते है…
कि ये वो मोहब्बत है जो कभी दिखाई नहीं देती…
पर इस दुनिया में उससे महफूज कोई छत्त नहीं होती…
Comments
Post a Comment
Thank You for Your Comment