Mazhab By Goonj Chand
दिल टूटा
नहीं
था
मेरा,
उसे
तुड़वाया
गया
था..
क्योकि हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था..
हिन्दू थी
मैं,
और
वो
था
एक
मुस्लिम..
ये सीधा
सा
मसला
पूरी
दुनिया
को
उलझाया
हुआ
था..
क्योकि
हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
कहने को
तो
प्यार
का
दुश्मन
नहीं
था
ज़माना..
पर मज़हब
को
अपने
इनकार
का
बहाना
बताया
हुआ
था..
क्योकि हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
कामयाब हो
ही
रहा
था
ज़माना
हमें
अलग
करने
कि
चाह
में..
क्योकि ज़हर
भरी
साज़िश
में
उन्होंने
इतना
प्यार
जो
मिलाया
हुआ
था..
क्योकि
हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
ज़माने ने
तब्दील
कर
ही
दिया
कांटो
में
हमारी
उस
राह
को..
जिस राह
पर
हमने
अपने
प्यार
का
फूल
खिलाया
हुआ
था..
क्योकि हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
ज़माने को
अपनी
मजबूरियाँ
बता
कर,
क़त्ल
कर
ही
डाला
उसने
मेरे
प्यार
का..
पर उसने
क़त्ल
किया
नहीं
था,
उससे
करवाया
गया
था..
क्योकि
हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
ज़माने की
बातो
में
आकर
कह
डाला
मैंने
भी
उसे
बेवफा..
पर वो
बेवफा
नहीं
था,
उसे
बेवफा
बनाया
गया
था..
क्योकि हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
नादान थे
हम
दोनों
जो
समझ
ना
सके
ज़माने
की
इस
चाल
को..
और चल
दिए
उस
अनजान
राह
पर,
उस
रात
हमें
जहाँ
बुलाया
गया
था..
क्योकि
हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
खुश थे
हम
ये
सोच
कर
की
शायद
हमारे
प्यार
का
एहसास
हो
गया
है
इन
ज़माने
वालो
को..
पर हमें
क्या
पता
था
कि
उस
रात
हमारी
मौत
का
मंसूबा
बनाया
गया
था..
क्योकि हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था...
आखिर में
मार
ही
डाला
इन
ज़माने
वालो
ने
हमें..
पर मारा
तब
भी
नहीं
था,
हमें
तो
ज़िंदा
चुनवाया
गया
था..
क्योकि
हमारे
प्यार
के
बीच
मज़हब
जो
आया
हुआ
था।
उस रात
वो
दोनों
तो
मर
कर
भी
एक
हो
गए
होंगे..
पर शायद
ही
कभी
ये
हिन्दू-मुस्लिम
के
झगडे
कम
होंगे...
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